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– विषम परिस्थितियों के बावजूद स्वास्थ्य और पोषण सेवाएं प्रदान करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं “प्रतिभा शर्मा”
(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस – 8 मार्च विशेष)
नारायणपुर, 7 मार्च 2022, प्रदेश के आदिवासी जिलों में कुछ जगहों पर आज भी परिस्थितियां विषम हैं। इनमें नारायणपुर जिला भी एक है, जो घने जंगलों से आच्छादित है और कई बार इस क्षेत्र के कुछ गाँव में कार्य करना बहुत ही कठिन होता है अबूझमाड़ जैसे इलाके में कठिन परिस्थितियों के बावजूद कार्य करने वाली बाल विकास संरक्षण अधिकारी प्रतिभा शर्मा किसी परिचय की मोहताज नहीं है। अपने बुलंद हौसलों और दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत प्रतिभा स्थानीय ग्रामीणों के जीवन स्तर को सुधारने और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में जुटी हुई हैं।
समुदाय के लिए कुछ करने की चाहत और मूल सुविधाओं के साथ ही समुदाय विशेष के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए अडिग 55 वर्षीय प्रतिभा कहती हैं “विषम परिस्थितियां ही हमें अपने मकसद तक पहुंचाने में सहायता भी करती हैं। मैं भी अगर घने जंगल से आच्छादित अबूझमाड़ जैसे इलाके में सेवाएं देने से घबरा जाती तो मेरा जीवन व्यर्थ ही था। राजधानी रायपुर से शिक्षा ग्रहण करने के बाद नारायणपुर में पोस्टिंग हुई। राजधानी के वातावरण और घने जंगलों के वातावरण में जमीन-आसमान का फर्क था। शुरू में थोड़ी घबराहट जरूर हुई। मगर पति का साथ मिला और उन्होंने हौसला दिया फिर क्या था मैं निरंतर आगे बढ़ती ही गई।“
परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए उनके समर्पण और इच्छाशक्ति ने लड़कियों को स्कूल लौटने, महिलाओं को स्वावलंबी बनने, छोटे-छोटे समूह बनाकर अपनी कला को व्यवसाय का रूप देने के लिए प्रेरित किया है।
22 से शुरू कर 200 गांव तक पहुंचा रही पोषण और स्वास्थ्य सेवाएं- प्रतिभा अपने जिले में आंगनवाड़ी, सरकार द्वारा संचालित पोषण केंद्रों में सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की देखरेख करती हैं। वह समुदाय और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के बीच की दूरी को पाटने के लिए नियमित रूप से क्षेत्र का दौरा करती हैं, क्षेत्र वासियों से मुलाकात कर उनकी समस्याओं को जानकर और उन समस्याओं को व्यक्तिगत प्रयास से पाटने में मदद करती हैं। प्रतिभा कहती हैं “मैंने बदलते अबूझमाड़ को देखा है। जब 1991-92 में मैंने इस इलाके में कार्य करना शुरू किया तब 22 गांव तक के लोगों तक ही समग्र विकास, पोषण और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध थीं, परंतु आज क्षेत्र के लोगों विशेषकर महिलाओं और बच्चों के जीवन स्तर में बदलाव आया है। पहले वह कपड़े भी नहीं पहना करते थे, मगर आज मैं उन्हें कपड़े पहनते, खरीदते और पौष्टिक आहार लेने के प्रति जागरूक होते देख रही हूं। आज 200 गांवों तक में पोषण और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं।“
मृत्यु और जीवन को सहजता से लेना सीखा है- प्रतिभा बताती हैं “आदिवासी बहुल क्षेत्र होने की वजह से इन इलाके के लोग मुखर नहीं हैं,खासकर महिलाएं अपनी परेशानी, समस्या या फिर भावना को व्यक्त नहीं करती हैं। मुझे याद है जब मेरी पोस्टिंग हुई, उसी दौरान एक 30 वर्षीय महिला का छह माह का बच्चा रात को सोते वक्त घर में जल रहे अलाव में गिरकर आधा जल गया। जब इसकी सूचना हमें मिली तो हम वहां पहुंचे, वहां पहुंचकर हम स्तब्ध थे क्योंकि बच्चे की मां उस बच्चे को लेकर बैठी थी, मदद की कोई अपील नहीं कर रही थी, जैसे उसने बच्चे की मृत्यु को स्वीकार लिया हो। रोना भी आया मुझे क्योंकि मैं खुद भी एक मां थी, इसलिए बिना देर किए बच्चे को लेकर अस्पताल पहुंची। इस वाक्ये से मुझे जीवन और मृत्यु के दौरान सहजता से लिए जाने की सीख दी।“
1992 से अब तक एक दुर्गम इलाके में पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए सुपोषण एवं स्वास्थ्य की अलख जगाने वाली प्रतिभा शर्मा मानती हैं की अभी काफी काम किया जाना है और अगली पीढ़ी की सेवा के लिए भी वह पूरी तरह तैयार हैं।