प्रदेश की दस प्रतिशत आबादी सिकल सेल के खतरे के दायरे में…

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  • प्रदेश की दस प्रतिशत आबादी सिकल सेल के खतरे के दायरे में
  • वर्ष-2017 से समस्त स्वस्थ्य केंद्रों में की जा रही स्क्रीनिंग
  • प्रदेश के दो से तीन लाख लोगों में सिकलसेल रोग की संभावना

रायपुर। सिकल सेल एक अनुवांशिक बीमारी है। इसमें गोलाकार लाल रक्त कण (हीमोग्लोबिन) हंसिए के रूप में परिवर्तित होकर नुकीले और कड़े हो जाते हैं, जिसके कारण शरीर की सभी कोशिकाओं तक पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन पहुंचने का काम बाधित होता है। यदि समय पर इसका इलाज नहीं किया गया तो ये जानलेवा भी साबित हो सकती है। छत्‍तीसगढ़ की करीब दस प्रतिशत जनसंख्या सिकल सेल के खतरे के दायरे में हैं। इसमें कुछ जाति विशेष के लोग शामिल हैं।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश के दो से तीन लाख लोगों में सिकलसेल रोग पाया जा सकता है। प्रदेश में वर्ष-2008 से सिकल सेल एनीमिया पर कार्य किया जा रहा है। वर्ष-2012 में सिकल सेल पर कार्य किये जाने के उद्देश्य से रायपुर में सिकल सेल इंस्टिट्यूट प्रारंभ किया गया हैं, जहां रिसर्च, रेफर्रल तथा प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्ष-2017 से समस्त स्वस्थ्य केंद्रों में स्क्रीनिंग की जा रही हैं।

2047 तक देश से सिकल सेल को समाप्त का लक्ष्‍य

केंद्र सरकार ने वर्ष-2047 तक देश से सिकल सेल को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एक जुलाई 2023 से सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन प्रारंभ किया गया है। इसके तहत प्रदेश के समस्त 0-40 वर्ष के लोगों की सिकल सेल स्क्रीनिंग जांच कर सिकल सेल कार्ड प्रदान किया जाना है।

राज्य में अब तक 1.11 करोड़ व्यक्तियों की स्क्रीनिंग हो चुकी है। इसमें करीब 2.9 लाख सिकल सेल वाहक तथा 22,672 मरीजों की पहचान हुई है। डाक्टरों का कहना है कि सिकल सेल वाहक का मतलब है कि आप उन जीनों में से एक को धारण करते हैं जो सिकल सेल रोग का कारण बनते हैं। लेकिन, स्वयं सिकल सेल से पीड़ित नहीं हैं। इसे सिकल सेल विशेषता के रूप में भी जाना जाता है।

सिकल सेल कुंडली का करें मिलान

रायपुर मेडिकल कालेज के डा अरविंद नेरल का कहना है कि विवाह के दौरान दूल्हा-दुल्हन सिकल सेल के मरीज न हों, न ही वाहक हों। इसके लिए पंडितों को भी पहल करनी चाहिए। कुंडली के साथ-साथ सिकल सेल कुंडली का भी मिलान करना चाहिए। इससे गंभीर बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। जागरुकता में कमी के चलते यह बीमारी बढ़ रही है। सिकल सेल पीड़ित असहनीय पीड़ा से गुजरते हैं। ऐसे में जरूरी है कि सही समय पर स्क्रीनिंग हो, बीमारी की पहचान हो ताकि तत्काल इलाज शुरू हो सके।

सिकल सेल संस्थान बनेगा सेंटर आफ एक्सीलेंस

रायपुर मेडिकल कालेज परिसर में सिकलसेल संस्थान को 48 करोड़ की लागत से सेंटर आफ एक्सीलेंस बनाया जाना है। भविष्य में यहां बोन मैरो ट्रांसप्लांट की योजना है। जेल रोड स्थित सिकल सेल संस्थान को तोड़कर पांच मंजिला नई बिल्डिंग बनाई जा रही है। बताया जाता है कि पहली बिल्डिंग में ओपीडी और अन्य चेंबर होंगे।

पैथोलाजी लैब को-आर्डिनेटर रूम, डाक्टर चेंबर, मेडिसिन स्टोर, बैक साइड लाबी तथा दूसरे बिल्डिंग में रिसर्च सेंटर होगा। तीसरे फ्लोर में कांफ्रेस रूम, आडिटोरियम, वीडियो कांफ्रेंसिंग रूम, चौथे फ्लोर में रिहेबिलेशन सेंटर और पांचवें में शिक्षण ब्लाक होगा। इसके साथ ही संस्थान के पीछे के हिस्से में दो और बिल्डिंग बनाने की योजना है। इसमें स्टाफ क्वार्टर होंगे। इसमें 30 बेड की आइपीडी और प्रशिक्षण की सुविधा भी रहेगी।

स्वास्थ्य विभाग के राज्य कार्यक्रम अधिकारी डा. निधि ग्वालरे ने कहा, प्रदेश में सिकल सेल बीमारी की पहचान के लिए लगातार स्क्रीनिंग की जा रही है। राज्य के 33 जिलों में एक करोड़ 77 लाख 69 हजार 535 सिकल सेल स्क्रीनिंग का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें से एक करोड़ 11 लाख छह हजार 561 स्क्रीनिंग हो चुकी है। इसमें एक करोड़ छह लाख 24 हजार 245 स्क्रीनिंग निगेटिव पाई गई है।

 

 

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