वट सावित्री व्रत कल, सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत का बड़ा महत्व…

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सावित्री सत्यवान की कथा का करेंगे श्रवण

रायपुर। वट सावित्री व्रत और शनि जयंती इस साल एक ही दिन छह जून को मनाया जाएगा। संस्कारधानी में इस पर्व को मनाने व्रती जुट गए हैं। बाजार में पूजन सामग्री की खरीदारी जोरो पर है। मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जा रहा है,वहीं सुहागिन इस दिन वट की पूजा कर परिक्रमा करेंगी।

 

सुहागिन महिलाएं इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का का वरदान प्राप्त होता है। यह व्रत महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इसके अलावा, कुछ जगहों पर कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत का बड़ा महत्व है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा-अर्चना कर जल अर्पित करती हैं। इसी दिन शनि जयंती भी है।

 

कुछ लोग शानि की आराधना भी करते हैं। साढ़े साती या शनि का शनि ढैय्या चल रहा है वह शनि स्त्रोत का पाठ करेंगे। शहर के राजकिशोर नगर स्थित शनि मंदिर, चिल्हाटी शनि धाम सहित अन्य सभी शनि मंदिरों में इस दिन भक्तों का तांता लगा रहेगा। शनि चालीसा का पाठ करेंगे। शनि मंदिर जाकर काले माह साबुत, तेल, काला कपड़ा, काला फल, सूखा नारियल शनि महाराज को अर्पित और शनि के बीच मंत्र का जाप करते नजर आएंगे।

 

सावित्री सत्यवान की कथा का करेंगे श्रवण

 

सुहागिनों द्वारा वट वृक्ष की परिक्रमा करते समय कच्चा धागा लपेटा जाता है। इस व्रत को करने से रोगों से छुटकारा मिलता है और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। इससे परिवार निरोगी रहता है। बता दें कि वट देव वृक्ष है। वट वृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन विष्णु और अग्र भाग में देवाधिदेव भगवान शिव स्थित रहते हैं। देवी सावित्री भी बट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं। बता दें कि इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत से मूत्य पति को जीवित किया था। तब से यह व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है। कुछ महिलाएं अमावस्या को ही व्रत रखती हैं। इस व्रत में करती हैं। पूजा करते समय स्त्रियां वट वृक्ष को जल से सींचती हैं।सावित्री सत्यवान की कथा सुनते हैं।

 

 

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