Self-confidence sank the Raman government; Bhupesh’s hard work paid off, BJP remained in oblivion, Congress overturned the power.

शब्द हैं – छत्तीसगढ़ के पूर्व इलेक्शन कमिश्नर ‘डॉ. सुशील त्रिवेदी’ के …

@खबरवाला.न्यूज़“भाजपा अपने 15 साल के शासन से अति आत्मविश्वास से भरी हुई थी। उसके नेता सत्ता के इतने आदि हो चुके थे कि उनका कार्यकर्ताओं और जनता से जमीनी संपर्क करीब-करीब खत्म ही हो चुका था। अंदर ही अंदर लोगों के भीतर भाजपा के नेताओं के खिलाफ माहौल बन रहा था। 16 अक्टूबर 2018 को निर्वाचन आयोग ने विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी। दिलचस्प बात यह है कि सच्चाई से दूर हो गई रमन सिंह सरकार को इस चुनाव में विजय को लेकर, बड़ी निश्चिंतता थी। इसका एक कारण यह था कि रमन सिंह के करीबी अधिकारियों ने उन्हें आश्वस्त कर दिया था कि उनके सर्वेक्षण और विश्लेषण के आधार पर राज्य में भाजपा बहुत आराम से चुनाव जीत रही है। यह बात अलग है कि इतना कुछ जानते हुए भी कुछ विश्लेषकों ने रमन सिंह को आगाह किया था। लेकिन रमन सिंह अपने अधिकारियों द्वारा किये गये सर्वेक्षण पर ज्यादा भरोसा कर रहे थे। इसी आधार पर विधानसभा चुनाव 2018 के लिए भाजपा के केन्द्रीय नेताओं ने घोषित कर दिया कि पार्टी 65 सीटें जीत रही है।

कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल पूरे प्रदेश में घूम घूमकर कांग्रेस संगठन को फिर से सक्रिय करने में जुटे थे। भूपेश बघेल को पता था कि उनका मुकाबला भाजपा के साथ-साथ अजीत जोगी की नई पार्टी से भी है। इस दोहरे वार का सामना करने के लिए भूपेश बघेल ने टी.एस. सिंहदेव के साथ मिलकर एक पूरी टीम बनाई । कांग्रेस में टिकट बांटने में भी इसी जोड़ी की पसंद को वरीयता मिली। नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव की अगुवाई में कांग्रेस का चुनाव घोषणा-पत्र बना। इस घोषणा-पत्र में सबसे लुभावनी घोषणाएं थीं – 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी करना, सत्ता में आते ही तत्काल कर्ज माफी और बिजली बिल हाफ करना।

भाजपा ने 15 साल की अपनी सरकारी उपलब्धियों का जमकर प्रचार किया, लेकिन परिणाम ऐसे आए जो भाजपा के लिए स्तब्ध करने वाले थे। कांग्रेस को 68 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई। अजीत जोगी की नई पार्टी ने बसपा के साथ गठबंधन किया था जिससे जोगी की ‘जनता कांग्रेस (छत्तीसगढ़)’ को 5 सीटें मिलीं और बसपा को 2 सीटें । यहां ध्यान देने की बात है कि यह पहली बार था कि जब किसी क्षेत्रीय दल ने इतनी सीटें पाई किंतु सरकार के गठन में उसकी भूमिका अप्रासंगिक थी।…

कांग्रेस ने बस्तर संभाग की कुल 12 सीटों में से 11 और सरगुजा संभाग की 14 में से 14 सीटें जीतकर अपनी राजनीतिक ताकत की नई इबारत लिखी थी। जीत की आंधी में भारतीय जनता पार्टी के तकरीबन सभी मंत्री चुनाव हार गए थे। भाजपा अधिकांश मंत्रियों के हारने से भी सदमे में थी और उसे फिर से उठकर खड़ा होना… कठिन लग रहा था। इस पर बड़ी समस्या यह थी कि लोकसभा 2019 का चुनाव सामने खड़ा था। लेकिन इतनी बड़ी जीत के बाद कांग्रेस के सामने भी मुख्यमंत्री चुनने का संकट था…

भारी जीत के बाद कांग्रेस में सीएम पद के लिए कैसे रस्साकशी हुई ? …. सुनिए कल , पन्द्रवें और अंतिम भाग में ….

 सुजाति के जाल में फंसे जोगी ने बनाई नई पार्टी:कांग्रेस से दरकिनार हो किया राजनीतिक सम्मेलन, फिर उदय हुआ ‘जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे)’ का

अजीत जोगी, तत्कालीन बिलासपुर जिले के ‘ धुर ’ आदिवासी क्षेत्र मरवाही के एक गांव में पैदा हुए थे। 16 साल की सेवा में वे कई जिलों के कलेक्टर रहे थे। इंदौर कलेक्टर रहते हुए उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। वे दो बार राज्यसभा सदस्य और एक बार लोकसभा सदस्य रहे। लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनने के बाद, वे एक के एक विवादों में उलझते गए। इन्हीं विवादों के चलते, उन्हें कांग्रेस ने दर किनार कर दिया।

2. एक ऑडियो टेप ने पिता-पुत्र को कांग्रेस से बाहर कराया:अंतागढ़ कांड में अजीत-अमित जोगी फंसे, साथ देने में 2 विधायक भी हुए थे निलंबित

मैं लगातार कांग्रेस की हार और उसके अंदर मची खलबली देख रहा था। अभी एक और साजिश का खुलासा होना बाकी था, जिसने अजीत जोगी को पार्टी से निकलवा ही दिया। यहांसे निकल गई जीत:छत्तीसगढ़ में रमन तीसरी बार बने मुख्यमंत्री; भूपेश को सौंपी फिर कांग्रेस ने कमानकांग्रेस हाई कमान ने नंद कुमार पटेल की शहादत के बाद चरणदास महंत को फिर से अध्यक्ष बना दिया। धारणा थी कि इस चुनाव में कांग्रेस को झीरम घाटी घटना के कारण सहानुभूति का लाभ मिलेगा। और यह भी कि रमन सिंह सरकार के 10 साल पूरे हो जाने पर एन्टी इनकमंबैंसी की भी स्थिति बनेगी। टिकट वितरण के समय अजीत जोगी और कांग्रेस संगठन के बीच के मतभेद पूरी तरह सामने आ गए।

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