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रायपुर, 7 मार्च: 8 मार्च को नो स्मोकिंग डे के अवसर पर, डॉक्टर्स, कैंसर पीड़ित और होटल एसोसिएशन ने भारत सरकार से अपील की है कि होटल/रेस्तरां और हवाई अड्डों पर निर्दिष्ट धूम्रपान कक्षों को हटाया जाए ताकि लोगों को सेकेंड हैंड स्मोक (दूसरों के सिगरेट/बीड़ी के धुंए) से बचाया जा सके। कोटपा 2003 में संशोधन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सरकार की प्रशंसा करते हुए, इनलोगों ने अपील की है कि भारत को 100 प्रतिशत धूम्रपान मुक्त बनाने और भारत में कोविड 19 संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए धूम्रपान क्षेत्रों के मौजूदा प्रावधान को तत्काल हटाया जाए।
मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर केयर के चेयरमैन डॉ हरित चतुर्वेदी ने कहा;धूम्रपान फेफड़ों के काम को खराब करता है और प्रतिरक्षा को कम करता है। 100% धूम्रपान मुक्त वातावरण सुनिश्चित करने के लिए होटल और रेस्तरां तथा यहां तक कि हवाई अड्डों में भी सभी निर्दिष्ट धूम्रपान क्षेत्रों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। इन निर्दिष्ट धूम्रपान क्षेत्रों में कोटपा की आवश्यकताओं के अनुसार शायद ही कभी सभी शर्तों का अनुपालन होता है और वास्तव में हमारी जनता सेकेंड हैंड धुएं (दूसरों के धुंए) के संपर्क में आती है और इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम में है।”
भारत में, सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार व वाणिज्य उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का निषेध) अधिनियम (कोटपा 2003) के अनुसार सभी सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान प्रतिबंधित है। इस अधिनियम की धारा 4 ऐसी किसी भी जगह पर धूम्रपान को प्रतिबंधित करती है जहां जनता की पहुंच है। हालाँकि, कोटपा 2003, वर्तमान में रेस्तरां, होटल और हवाई अड्डों जैसे कुछ सार्वजनिक स्थानों पर कतिपय निर्दिष्ट धूम्रपान क्षेत्रों में धूम्रपान करने की अनुमति देता है।
पैसिव (निष्क्रिय) धूम्रपान पीड़ित और स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सुश्री नलिनी सत्यनारायण कहती हैं, “निष्क्रिय धूम्रपान का जोखिम भोजनालयों, विशेष रूप से होटल, रेस्तरां, बार और रेस्तरां, पब और क्लबों में होता है, जो धूम्रपान न करने वाले हजारों लोगों के जीवन को सिगरेट के धुएं के संपर्क में लाकर जोखिम में डालते हैं। चूंकि सिगरेट का धुंआ धूम्रपान क्षेत्रों से सामान्य क्षेत्रों में जाता है, इसलिए किसी भी परिसर में धूम्रपान की अनुमति नहीं देने के लिए कोटपा अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के सर्वोत्तम हित में सभी स्थानों को पूरी तरह से धूम्रपान मुक्त होना चाहिए।
दूसरों का धुंआ (सेकेंड हैंड स्मोकिंग) भी धूम्रपान जितना ही हानिकारक है। सेकेंड हैंड धुएं के संपर्क में आने से वयस्कों में फेफड़े के कैंसर और हृदय रोग सहित कई बीमारियां होती हैं और बच्चों में फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी और श्वसन संक्रमण होता है।
डॉ. जीपी शर्मा, प्रेसिडेंट, हॉस्पिटैलिटी एसोसिएशन ऑफ उत्तर प्रदेश कहते हैं;हम देख रहे हैं कि परिवार उन होटलों में रहना पसंद करते हैं जो धूम्रपान की अनुमति नहीं देते हैं। हमें खुशी है कि सरकार आतिथ्य क्षेत्र को पूरी तरह धूम्रपान मुक्त बनाने के लिए कोटपा प्रावधानों को मजबूत कर रही है। हम लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सरकार की पहल का समर्थन करते हैं,”
भारत सरकार ने कोटपा संशोधन प्रक्रिया शुरू की है तथा सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति व वितरण के विनियमन) (संशोधन) विधेयक, 2020 पेश किया है। हाल ही में भारत में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 72% लोगों का मानना है कि सेकेंड हैंड स्मोक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है और 88% लोग इस खतरे से निपटने के लिए वर्तमान तंबाकू नियंत्रण कानून को मजबूत बनाने का पुरजोर समर्थन करते हैं।
भारत में तंबाकू उपयोगकर्ताओं की संख्या दुनिया भर में दूसरी सबसे बड़ी (268 मिलियन या भारत में सभी वयस्कों का 28.6%) है – इनमें से कम से कम 1.2 मिलियन हर साल तंबाकू से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं। दस लाख मौतें धूम्रपान के कारण होती हैं, जिनमें से 200,000 से अधिक सेकेंड हैंड स्मोक एक्सपोज़र के कारण होती हैं, और 35,000 से अधिक धूम्रपान रहित तंबाकू के उपयोग के कारण होती हैं। भारत में लगभग 27% कैंसर तंबाकू के उपयोग के कारण होते हैं। तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारियों की कुल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागत 182,000 करोड़ रुपये थी, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.8% है ।
वर्ष 2018 से तंबाकू या तंबाकू युक्त उत्पादों के सेवन का नशा और धूम्रपान छुड़वाने में सक्रिय एसोसिएट प्रोफेसर डेंटल कॉलेज रायपुर एवं स्टेट मास्टर ट्रेनर टोबैको कंट्रोल
प्रोग्राम, डॉ. शिल्पा जैन कहती हैं “नशापान की पहली सीढ़ी तंबाकू का सेवन करना ही है। 11 वर्ष से 18 वर्ष के बच्चे प्रदेश में तंबाकू का सेवन कर रहे हैं और महिलाएं ( उम्रदराज ) तक तंबाकू या तंबाकू उत्पादों के सेवन से अछूती नहीं हैं। इनकी पहचान कर उन्हें इलाज और तंबाकू सेवन नहीं करने से रोकना बड़ी चुनौति है। ग्राउंड लेबल पर काउंसिलिंग, व्यवहारिक बदलाव ( बिहेवियर चेंज) की योजना, सरकार को उत्पादों का रेट बढ़ाना होगा ताकि इनकी सुलभता कम हो तभी नो स्मोकिंग डे या अन्य दिवस को मनाए जाना सार्थक होगा।“
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Susmita Shrivastava
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