लोक कलाकार बुटलूराम ने प्रधानमंत्री को भेंट किया बांस की आकर्षक बांसुरी…

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लोक कलाकार बुटलूराम ने प्रधानमंत्री को भेंट किया बांस की आकर्षक बांसुरी…

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नारायणपुर, 01 अप्रैल 2025: जिले के आदिवासी लोक कलाकार श्री बुटलूराम माथरा को कला क्षेत्र में उनके सराहनीय योगदान एवं आदिवासी सामाजिक चेतना और उत्थान के प्रयासों के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा वर्ष 2024 में शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान से सम्मानित किया गया है। वे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को बिलासपुर प्रवास के दौरान उन्हें बांसुरी भेंटकर किया है, इस दौरान प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा माथरा से लोक कला के संबंध में विस्तृत चर्चा किया गया। कलेक्टर प्रतिष्ठा ममगाईं के निर्देशानुसार आदिवासी विकास विभाग के माध्यम से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रवास के अवसर पर बिलासपुर पहुंचकर श्री माथरा द्वारा लोक कला को संरक्षण एवं सवर्धन के लिए किए जा रहे कार्यों के बारे में चर्चा करते हुए माथरा को इस कार्य के लिए प्रधानमंत्री के द्वारा उत्साहवर्धन किया।

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श्री माथरा ने विगत चार दशकों से जनजातीय कला के संरक्षण और संवर्धन हेतु निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ‘‘मन की बात के 115वें एपिसोड‘‘ में श्री बुटलूराम माथरा का उल्लेख करते हुए जनजातीय लोक कला के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट प्रयासों की सराहना की थी। जिले के देवगांव में जन्मे श्री माथरा ने वहीं प्राथमिक स्तर तक शिक्षा प्राप्त की। शिल्प कला का ज्ञान उन्हें विरासत में प्राप्त हुआ है। उनके पिता श्री माहरूराम माथरा कृषि कार्य के साथ-साथ बांस शिल्पी थे। अपने पिता के सानिध्य में ही बुटलूराम ने बचपन से बांस शिल्प का सृजन करना प्रारंभ किया। वे बम्बू आर्ट (बांस कला) और तुमा (सूखी लौकी) शिल्प कला के क्षेत्र में सिद्धहस्त हैं। उनकी बनाई हुई बॉस की बांसुरी, झूमर और अन्य सजावटी सामग्रियां बेहद लोकप्रिय हैं। बुटलूराम ने लगभग 60 स्थानीय युवाओं को पारंपरिक कलाओं में प्रशिक्षित कर न केवल इन कलाओं का संरक्षण किया है बल्कि युवाओं को रोजगार के अवसर भी प्रदान किए हैं। उन्होंने बस्तर के जनजातीय नृत्य कला के संरक्षण, प्रचार-प्रसार और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। श्री माथरा ने बस्तर संभाग के जिलों के जनजातीय नर्तक दलों को संगठित कर देश के विभिन्न राज्यों और शहरों में जनजातीय नृत्य महोत्सव, राष्ट्रीय पर्व और अन्य कार्यक्रमों में सहभागिता का अवसर प्रदान किया है। श्री माथरा के इस उत्कृष्ट योगदान से न केवल बस्तर की जनजातीय कला का संरक्षण हुआ है, बल्कि इसे राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में भी पहचान मिली है।

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