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संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति का मूल कारण शक्ति (Chaitra Navratri 2025) ही हैं जिसे ब्रह्मा विष्णु व शिव तीनों ने मिलकर मां नवदुर्गा के रूप में सृजित किया। इसलिए मां दुर्गा में ब्रह्मा विष्णु एवं शिव तीनों की शक्तियां समाई हुई हैं। जगत की उत्पत्ति पालन एवं लय तीनों व्यवस्थाएं जिस शक्ति के आधीन संपादित होती हैं वही हैं पराम्बा मां भगवती आदिशक्ति।
स्वामी अवधेशानन्द गिरि (आचार्यमहामंडलेश्वर, जूनापीठाधीश्वर)। चैत्र नवरात्र का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्व है। नवरात्र देवी भगवती की उपासना के माध्यम से आत्मिक शक्ति, मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाने का एक अलभ्य अवसर होता है। इस कालखंड में आहार-विहार का संयम व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और आंतरिक शक्तियों को जाग्रत करने का कार्य करता है। देवी दुर्गा इच्छा, ज्ञान और क्रिया शक्ति की प्रतीक हैं। वह संपूर्ण ब्रह्मांड की आधारभूत और क्रियात्मक शक्ति के रूप में आराधित होती हैं।
मां ललिता त्रिपुरसुंदरी की उपासना से भक्तों को आत्मिक बल, जीवन में संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। नवरात्र के नौ दिनों में किया गया तप और साधना व्यक्ति को सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से मुक्त कर कल्याणकारी जीवन की ओर प्रेरित करता है। यह कालखंड निस्संदेह आत्मिक उत्थान और व्यक्तिगत विकास के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है!
मानव मन में अंतर्निहित दुष्प्रवृत्तियों का निर्मूलन मां की कृपा अर्थात् निर्मल मति और आत्म-शक्ति के जागरण से संभव है। अंतःकरण की पूर्ण शुचिता के उपरांत प्रस्फुटित “शुभता और दिव्यता” ही शक्ति आराधना की फलश्रुति है। इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति के रूप में जो सचराचर जगत में विद्यमान हैं, उन मां की आराधना का यह पवित्र पर्व नवरात्र सभी के लिए मंगलमय हो।
संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति का मूल कारण शक्ति ही हैं, जिसे ब्रह्मा, विष्णु व शिव तीनों ने मिलकर मां नवदुर्गा के रूप में सृजित किया। इसलिए मां दुर्गा में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव तीनों की शक्तियां समाई हुई हैं। जगत की उत्पत्ति, पालन एवं लय तीनों व्यवस्थाएं जिस शक्ति के आधीन संपादित होती हैं, वही हैं पराम्बा मां भगवती आदिशक्ति। नवरात्र का माहात्म्य सर्वोपरि इसलिए है कि इसी कालखंड में देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर आद्या शक्ति की प्रार्थना की थी और उनकी पुकार सुनकर देवी मां का आविर्भाव हुआ। उनके प्राकट्य से दैत्यों के संहार करने पर देवी मां की स्तुति देवताओं ने की थी। नवरात्र राक्षस महिषासुर पर देवी मां दुर्गा की विजय का प्रतीक है, जो नकारात्मकता के विनाश और जीवन में सकारात्मकता के पुनरुद्धार का प्रतीक है।
देवी मां दुर्गा का हर रूप एक अद्वितीय गुण या शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिए, शैलपुत्री शक्ति और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करती हैं। ब्रह्मचारिणी तपस्या का प्रतीक हैं और सिद्धिदात्री परम तृप्ति और ज्ञान प्रदायिनी हैं। आदिशक्ति या आदि पराशक्ति या महादेवी मां दुर्गा को सनातन, निराकार, परब्रह्म, जो कि ब्रह्मांड से भी परे एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में माना जाता है।
शाक्त संप्रदाय के अनुसार, यह शक्ति मूल रूप में निर्गुण है, परंतु निराकार परमेश्वर जो न स्त्री है न पुरुष, को जब सृष्टि की रचना करनी होती है तो वे आदि पराशक्ति के रूप में उस इच्छा रूप में ब्रह्मांड की रचना, जननी रूप में संसार का पालन और क्रिया रूप में वह पूरे ब्रह्मांड को गति तथा बल प्रदान करते है। नवरात्र मां के अलग-अलग रूप के अविलोकन करने का दिव्य पर्व है। माना जाता है कि नवरात्र में किए गए प्रयास, शुभ-संकल्प बल के सहारे देवी दुर्गा की कृपा से सफल होते हैं। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षसी प्रवृतियां हैं, उसका हनन करके विजय का उत्सव मनाते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति जीवनभर या पूरे वर्षभर में जो भी कार्य करते-करते थक जाते हैं तो इससे मुक्त होने के लिए इन नौ दिनों में शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि और बुद्धि में शुद्धि आ जाए, सत्व शुद्धि हो जाए; इस तरह के शुद्धीकरण करने का, पवित्र होने का पर्व है यह नवरात्र। नवरात्र का उत्सव बुराइयों से दूर रहने का प्रतीक है। यह लोगों को जीवन में उचित एवं पवित्र कार्य करने और सदाचार अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इस पर्व पर सकारात्मक दिशा में कार्य करने पर मंथन करना चाहिए, ताकि समाज में सद्भाव के वातावरण का निर्माण हो सके। नवरात्र काल आहार की शुद्धि के साथ मंत्र की उपासना का काल है।
संपूर्ण ब्रह्मांड तरंगों से भरा हुआ है। मंत्र के माध्यम से उन तरंगों को, जो शक्ति और सामर्थ्य के रूप में बिखरी हुई है, उन्हें आकर्षित किया जा सकता है। इस काल की तरंगें बहुत सामर्थवान है। उनके साथ एकीकृत होकर हम अप्रत्याशित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। अतः मंत्र वातावरण से सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित कर आपके पास लाते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं।
देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का यह पर्व हमें मातृशक्ति की उपासना तथा सम्मान की प्रेरणा देता है। समाज में नारी के महत्व को प्रदर्शित करने वाला यह पर्व हमारी संस्कृति एवं परंपरा का प्रतीक है। मां ही आद्यशक्ति हैं। सर्वगुणों का आधार। राम-कृष्ण, गौतम, कणाद आदि ऋषि-मुनियों, वीर-वीरांगनाओं की जननी हैं।
नारी इस सृष्टि और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जीवन के सकल भ्रम, भय, अज्ञान और अल्पता का भंजन एवं अंतःकरण के चिर-स्थायी समाधान करने में समर्थ हैं विश्वजननी कल्याणी ललिताराजराजेश्वरी पराशक्ति श्री मां दुर्गा जी की उपासना का यह दिव्य पर्व चैत्र नवरात्र।