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मासिक पत्रिका सियासतगाह के अनवरत प्रकाशन के चार वर्ष पूर्ण
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पांचवे स्थापना दिवस पर जुटे प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ
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बदलते परिवेश के साथ पत्रकारिता जगत की नई चुनौतियां विषय पर वक्ताओं ने रखे अपने ओजस्वी विचार
रायपुर।raipur@khabarwala.com वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध ने कहा कि हर दौर में पत्रकारिता के साथ चुनौतियां और संघर्ष जुड़ा रहता है। यह अलग बात है कि समय के साथ पत्रकारिता में बदलाव आता रहा है और उसके साथ ही चुनौतियों का स्वरूप भी बदलता रहा है। रायपुर प्रेस क्लब के हॉल में मासिक पत्रिका सियासतगाह के पांचवे स्थापना दिवस पर बदलते परिवेश के साथ पत्रकारिता जगत की नई चुनौतियां विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
परिचर्चा मे मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए श्री मुक्तिबोध ने कहा कि आज से 200 वर्ष पूर्व पत्रकारिता का स्वरूप अलग था। एक तरह से पत्रकारिता को राज्याश्रय प्राप्त था। हर राजा के दरबार में एक विद्वान होता था जो बगैर किसी के प्रभाव में आए अपनी बात कविता के माध्यम से कहता था जिससे राजा को मार्गदर्शन मिलता था। समय के साथ स्वरूप बदला तो चुनौतियां भी बदलती चली गई। आज सोशल मीडिया के दौर में हर व्यक्ति सूचना का संप्रेषण बगैर जांच परख किए कर रहा है, जो खतरनाक साबित हो रहा है। इसी का परिणाम है कि पत्रकारिता के प्रभाव का अवमूल्यन हो रहा है। एक दौर था जब एक लाइन भी किसी के खिलाफ छप जाए तो लोग अखबार के दफ्तर आकर सफाई देते थे। आज ये दौर है कि लोग खबरें छपने से नहीं डरते उल्टे कुछ भी छाप लेने की चुनौती दे देते हैं। कार्यक्रम का संचालन रायपुर प्रेस क्लब कार्यकारिणी सदस्य नदीम मेमन ने किया व धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ पत्रकार सुखनंदन बंजारे ने किया। इस अवसर पर सियासतगाह की संपादक वर्षा द्विवेदी के साथ ही प्रदेश और शहर के वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा, अनिल पुसदकर, उचित शर्मा, ताहिर हैदरी, रायपुर प्रेस क्लब के कोषाध्यक्ष रमन हलवाई, संयुक्त सचिव अरविंद सोनवानी, कार्यकारिणी सदस्य किशन लोखंडे , बीएसपीएस रायपुर जिला अध्यक्ष दिलीप साहू, महेंद्र नामदेव, लवकुश शुक्ला, अजय श्रीवास्तव , शिवशंकर पांडे, श्रवण यदु, विकास यादव, लविंदर पाल सिंघोत्रा, प्रेम संतोष महानंद, सहित अनेक पत्रकार साथी मौजूद थे। इस अवसर पर कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर, सुरेंद्र वर्मा एवं अजय गंगवानी विशेष रूप से उपस्थित थे।
पत्रकारों को संगठनों का सदस्य बनने से रोकना अलोकतांत्रिक : गिरीश पंकज
देश के ख्यातनाम साहित्यकार, कवि, व्यंगकार और पत्रकार गिरीश पंकज ने कहा कि पत्रकारों को पत्रकारिता हित की लड़ाई लडऩे वाले किसी संगठन से जुडऩे से रोकना बेहद अलोकतांत्रिक कदम है। श्री पंकज ने पत्रकारिता के अपने दौर को याद करते हुए कहा कि उनके दौर में यह फक्र और जागरूकता का विषय माना जाता था। लेकिन आज कई संस्थान नौकरी देते वक्त ही पत्रकारों से इस संबंध में एग्रीमेेंट साइन करवाकर प्रतिबंधित करने लगे हैं। इसका विरोध होना चाहिए।
उन्होंने पत्रकार की भाषा को लेकर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि पत्रकारों को लिखने के साथ खूब पढऩा भी चाहिए। पढने से भाषा समृद्ध होती हैॅ और भाषा का लालित्य बढ़ता है। जिस लोकतंत्र में हम रह रहे हैं उस लोकतंत्र में अगर सत्ता पर सीधे-सीधे प्रहार करेंगे तो आप निपटा दिए जाएंगे। संकेतों में लिखकर भी अपनी बात कही जा सकती है।सियासतगाह की भाषा शैली की तारीफ करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि तमाम संघर्षों के बीच एक पत्रिका का लगातार प्रकाशन हो रहा है यह इस बात का प्रमाण है कि पत्रकार गंगेश द्विवेदी और संपादक वर्षा द्विवेदी ने भाषा संयमित रखते हुए अपने अंक प्रकाशित किए हैं।
पत्रकारों का एकजुट होना बेहद जरूरी : राजेश लाहोटी
एशियन न्यूज के संपादक राजेश लाहोटी ने कहा कि ऐसे दौर में जब पत्रकारों पर हमले तेज हो रहे हैं, पत्रकार साथियों का एकजुट होना बेहद जरूरी है। आपका संस्थान आपका कभी साथ देगा, यह संभव नहीं, अपने हितों और अपने सुरक्षा की व्यवस्था करना हमारी अपनी जिम्मेदारी है। कितने वेज बोर्ड पत्रकारों के वेतन के लिए बने लेकिन आज भी इनकी सिफारिशों को लागू कराने के लिए केस लडऩा पड़ रहा है, कई पत्रकार तबादले का दंश झेल रहे लेकिन आवाज नहीं उठा पा रहे हैं। हम दूसरों को दोष देेते हैं, लेकिन हम अपने काम में इतने मशगुल है कि हम आने वाली पीढ़ी को सिखाना भूल गए है, इसी का परिणाम है कि पत्रकारिता में स्किल्ड या ट्रेंड पत्रकारों की बेहद कमी है। सोशल मीडिया और डिजिटल जर्नलिज्म पत्रकारिता के लिए एक चुनौती लेकर आया है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज्म में कोई खबर आती है, तो उसकी भाषा, उसके प्रेजेंटेशन के साथ समाचार सहीं है या फेक है इसे क्रॉसचेक करने का सिस्टम बना हुआ है, लेकिन सोशल मीडिया और डिजिटल जर्नलिज्म में अगर कोई सीनियर पत्रकार है, तो वह समाचार प्रकाशित करने से पहले मानकों का पालन करता मिलेगा, लेकिन बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिन्होंने एंड्रॉइड मोबाइल से तस्वीर ली या वीडियो बनाया और अनगढ भाषा का इस्तेमाल कर खबर भेजनी शुरू कर दी। उस समाचार की उपयोगिता, उसके प्रकाशन से हो सकते वाले दुष्परिणाम आदि सोचने की उन्हें फुर्सत नहीं। यही नहीं कॉपी पेस्ट का चलन इस कदर बढ चुका है, कि एक वेबसाइट में प्रकाशित खबर बाकी जगह तेजी से कॉपी पेस्ट हो रही है। समाचार की विश्वसिनीयता या सत्यता जांचने की किसी को फुरसत नहीं है।
पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए पोस्टकार्ड अभियान में भागीदार बनें : नितिन चौबे
जनतंत्र टीवी के चैनल हेड एवं भारती श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय सचिव सह प्रदेश अध्यक्ष नितिन चौबे ने मौजूद सभी पत्रकार साथियों सेे पत्रकार सुरक्षा कानून को लेकर एक पोस्टकार्ड देश की राष्ट्रपति के नाम भेजने के अभियान में सहभागी बनने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि उनका संगठन 5अगस्त सोमवार को पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुरमु के नाम पोस्टकार्ड भेजने की मुहीम शुरू करने जा रहा है। इस अभियान के जरिए राष्ट्रपति से मांग करेंगे कि वे देश में पत्रकार सुरक्षा लागू कराने के लिए जरूरी कदम उठाएं। श्री चौबे ने कहा कि छत्तीसगढ़ बेहद शांत प्रदेश है, लेकिन पडोसी राज्यों सहित देश के कई इलाके में पत्रकारों की हत्याएं हो रही हैं। पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर हमें एकजुटता दिखाने की आवश्यकता हैँ। श्री चौबे ने पत्रकार साथियों से आग्रह किया कि उनकी निजी विचारधाराएं कुछ भी हो सकती है, लेकिन कलम चलाते वक्त अपने आपको तटस्थ रखना बेहद जरूरी है।
ग्लैमर और पावर देखकर नहीं मिशन लेकर आएं पत्रकारिता मेें : प्रफुल्ल ठाकुर
प्रेसक्लब अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने कहा कि आज से 18 से 20 साल पहले जो मिशन पत्रकारिता होती थी, अब वह दौर नहीं रह गया है। आज जो पीढ़ी आ रही है, पत्रकारिता के ग्लेमर और पावर को देखकर आ रही है, और आते ही वे अपने उद्देश्यों की पूर्ति में लग जाते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है, वे जो भी कर रह हैं, वे पत्रकारिता तो नहीं ही कर रहे हैं। आज सिटिजन जर्नलिज्म का दौर आ गया है, सोशल मीडिया में जिसे जो मन आ रहा पोस्ट कर रहा है, मेरा मानना है कि जिस तरह हर व्यक्ति, डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता उसी तरह हर व्यक्ति पत्रकार भी नहीं बन सकता। इसके लिए एक खास तरह की सोच और समझ प्रापर ट्रेनिंग के साथ विकसित करनी होती है। संस्थानों में कम गुरू शिष्य परंपरा के तहत जर्नलिस्ट ज्यादा सीखते हैं। सोशल मीडिया में कोई अंकुश नहीं है। डिजिटल जर्नलिज्म में तो संस्थाओं की बाढ़ आ गई है लेकिन यूजर संख्या की दौड़ में क्या सामग्री परोसी जा रही है, सभी देख रहे हैं। मीडिया भी अब न्यूज नहीं बल्कि व्यूज के पीछे भाग रहा है। इसे रोकना भी असंभव सा है। इसे नियंत्रित करने का रास्ता जल्द ही पत्रकारिता को, प्रदेश को देश और समाज को तलाशन होगा।
मिशन पत्रकारिता का दौर वापस लौटना चाहिए : गंगेश द्विवेदी
सियासतगाह पत्रिका के प्रबंध संपादक गंगेश द्विवेदी ने पत्रिका के शुरूवात और अब तक के सफर पर प्रकाश डाला। उन्होंने आज की परिचर्चा के विषय बदलते परिवेश मेें पत्रकारिता जगत की नई चुनौतियां, पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज से दो दशक पहले पत्रकारिता गर्व का विषय था। हमारे सीनियर पहले दिन से इस बात की सीख देते थे कि अगर पैसे कमाने में है दुनियां तमाम रास्तें हैं, उस रास्ते पर चले जाइए, लेकिन पत्रकारिता करनी है तो इसका मानकों और उच्च मापदंडों का पालन करते हुए अपना सारा समय यहां दीजिए और समाज के भले के लिए अपनी कलम चलाइए। उस दौर में पत्रकार एक रियल मास लीडर के रूप में उभरता था। अखबारों में अभियान चलाकर शहर की व्यवस्था प्रदेश की व्यवस्था को दुरुस्त करने का काम, भ्रष्टाचार और गड़बडिय़ा नजर आने पर पैरेलल इनवेस्टिगेशन करके पत्रकार सरकारी तंत्र पर बगैर लाग लपेट किए प्रहार करता था और व्यवस्थाएं तेजी से सुधरती थी। अब वह दौर नहीं रह गया है। पत्रकारिता के उच्च मापदंड स्थापित करने वाली पीढ़ी, बीच की पीढ़ी और नई पीढ़ी तीनों के लिए यह अवसर है कि चर्चा करके यह समाधान निकाला जाए कि मिशन पत्रकारिता का दौर वापस कैसे लौट सकता है? इसके राह में रोड़ा बनकर आ रही चुनौतियों का सामना किस तरह किया जा सकता है?