केन्द्रीय राज्य मंत्री पशुपालन एवं मछली पालन राजीव रंजन सिंह ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से ग्राम जोरातराई में स्थापित केच कल्चर तकनीक से मछली पालन का किया शुभारंभ…

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केन्द्रीय राज्य मंत्री पशुपालन एवं मछली पालन राजीव रंजन सिंह ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से ग्राम जोरातराई में स्थापित केच कल्चर तकनीक से मछली पालन का किया शुभारंभ…

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  • मछली पालन से मिलेगा कई परिवारों को रोजगार

 राजनांदगांव 12 जुलाई 2024केन्द्रीय राज्य मंत्री पशुपालन एवं मछली पालन श्री राजीव रंजन सिंह ने नई दिल्ली से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से आज राजनांदगांव विकासखंड के ग्राम जोरातराई में स्थापित केच कल्चर तकनीक के माध्यम से मछली पालन का शुभारंभ किया। इस अवसर पर सहायक संचालक मत्स्य पालन श्री एसके साहू ने बताया कि जिले में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए केज कल्चर तकनीक का उपयोग कर मछली उत्पादन शुरू किया जा रहा है। केज कल्चर को नेट पेन कल्चर भी कहा जाता है। इसके लिए जोरा तराई खदान का चयन किया गया है और पानी पर 9 यूनिट प्रति इकाई 18 कैज 162 फ्लोटिंग केज लगाए गए हैं। जहां केज कल्चर तकनीक का उपयोग कर मछली पालन शुरू किया जा रहा है। बंद पड़ी खदानों में मछली पालन से कई परिवारों को रोजगार मिलेगा। 

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उल्लेखनीय है कि केज कल्चर मछली पालन की एक ऐसी तकनीक है, जिसमें जलाशय में एक निर्धारित स्थान पर फ्लोटिंग केज यूनिट बनाई जाती है। सभी यूनिट एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। एक यूनिट में चार बाड़े होते हैं। एक बाड़ा 6 मीटर लंबा, 4 मीटर चौड़ा और 4 मीटर गहरा होता है। बाड़े के चारों ओर प्लास्टिक का मजबूत जाल होता है। इसे कछुए या अन्य जलीय जीव काट नहीं सकते। पानी में तैरते इसी जाल के बाड़े में मछली पालन किया जाता है। इन जालों में उंगली के आकार की मछलियों को पालन के लिए छोड़ दिया जाता है। मछलियों को रोजाना दाना डाला जाता है। ये मछलियां पांच माह में एक से सवा किलो की हो जाती हैं। मछली पालन की यह तकनीक जलाशय मत्स्य विकास योजना के तहत शुरू की जा रही है। खास बात यह है कि जलाशय के मूल उद्देश्य को प्रभावित किए बिना मत्स्य उत्पादकता को बढ़ाना है।

तालाब या झीलों की तुलना में केज में मछलियां तेजी से बढ़ती हैं। इसमें मछलियां स्वस्थ और सुरक्षित रहती हैं। मछलियों को खिलाना भी आसान है। मछलियों के बीमार होने की संभावना कम होती है, क्योंकि बाहरी मछलियों के संपर्क में नहीं आना होता। इसमें संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता। मत्स्यपालक अपनी जरूरत और मांग के अनुसार केज से मछलियां निकाल सकते हैं। जरूरत नहीं होने पर मछलियों को केज में ही छोड़ा जा सकता है। इससे कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि मछलियों को और बढऩे का मौका मिलता है। केज तकनीक के जरिए मत्स्यपालक कम लागत और कम समय में अधिक मुनाफा कमाते हैं। साथ ही मछली उत्पादन के मामले में जिला आत्मनिर्भर बन सकेगा। एक पिंजरे में 5 हजार तक केज साइज की मछलियां पाली जा सकेंगी। इस तरह जोरातराई में बने 162 केज यूनिट में 8 लाख से अधिक मछलियां पाली जा सकेंगी। वही प्रत्येक केज से 30 से 40 क्विंटल मछली का उत्पादन होगा।

जिले में पहली बार खदानों में केज कल्चर तकनीक से मछली उत्पादन शुरू किया जा रहा है। इसके लिए जोरातराई के दो खदानों का चयन किया गया है, जिसमें एक खदान में 9 इकाई यानी 162 केज और दूसरे खदान में 9 इकाई यानी 162 में याने कुल 18 केज कल्चर यूनिट स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से 9 इकाई हेतु विधिवत अनुदान राशि प्रदाय की जा चुकी है। यह तकनीक समय और लागत के लिहाज से मछली पालकों के लिए फायदेमंद है। मछलीपालकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत 486 लाख रूपए की लागत से 162 यूनिट केज लगाई है, जिसमें सरकार हितग्राहियों को 40 से 60 फीसदी अनुदान दे रही है। राज्य सरकार ने केज कल्चर के लिए स्थानीय बेरोजगार युवाओं एवं महिलाओं को रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के दृष्टिकोण से विधिवत आवेदन मंगाए गए थे। छत्तीसगढ़ की एक एजेंसी ने केज कल्चर यूनिट स्थापित किया। यूनिट स्थापित करने के बाद मछली पालन कर रहे हैं। केज यूनिट स्थापित होने से लोगों को अब फ्रोजन मछली नहीं खानी पड़ेगी और ताजी मछलियां लोगों तक पहुंचेंगी।

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