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ज्येष्ठ माह भीषण गर्मी वाला होता है, इस समय सूर्यदेव चरम पर होते हैं। माना जाता है इस दौरान उन्हें जल चढ़ाने से भाग्योदय होता है और मान सम्मान में वृद्धि होती है।
ज्येष्ठ माह भीषण गर्मी वाला होता है, इस समय सूर्यदेव चरम पर होते हैं। माना जाता है इस दौरान उन्हें जल चढ़ाने से भाग्योदय होता है और मान सम्मान में वृद्धि होती है। धार्मिक दृष्टि से भी इस माह को महत्वपूर्ण माना गया है। यह भगवान विष्णु का प्रिय मास है। इस महीने में उनकी पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। यही नहीं ज्येष्ठ माह में मां गंगा और हनुमान जी की पूजा का भी बहुत महत्व है। वहीं हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा एकादशी मनाई जाती है। इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति को अपार धन की प्राप्ति होती है। इसे जलक्रीड़ा एकादशी और अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। अपरा एकादशी का मतलब होता है अपार पुण्य। मान्यताओं के इस दिन विष्णु जी की पूजा करने से व्यक्ति के दुखों का अंत होता है और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी कड़ी में आइए जानते हैं इस साल इस उपवास को कब रखा जाएगा।
कब है अपरा एकादशी ?
पंचांग के अनुसार अपरा एकादशी का शुभारंभ 2 जून 2024 की सुबह 5 बजकर 4 मिनट पर होगा। इसका समापन 3 जून 2024 की रात 2 बजकर 41 मिनट पर है। उदया तिथि के अनुसार इस साल अपरा एकादशी का व्रत 2 जून को रखा जाएगा।
अपरा एकादशी 2024 व्रत की पूजन विधि
अपरा एकादशी का व्रत शुभ फलों से भरा है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से पहले यानी दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद से ही व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। फिर एकादशी के दिन सुबह स्नान के बाद विष्णु जी की विधि अनुसार पूजा करनी चाहिए। इस दौरान पूजा में तुलसी पत्ता, श्रीखंड चंदन, गंगाजल एवं मौसमी फलों का प्रसाद भगवान को अर्पित करें। व्रत रखने वाले लोग पूरे दिन अन्न का सेवन न करें। यदि जरूरत पड़े, तो फलाहार ले सकते हैं। अपरा एकादशी की शाम को विष्णु जी की आराधना करें और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। माना जाता है कि इस पाठ से विष्णु जी की विशेष कृपा बनी रहती है।
अपरा एकादशी के दिन करें इन मंत्रों का जाप
विष्णु मूल मंत्र
ॐ नमोः नारायणाय॥
भगवते वासुदेवाय मंत्र
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
विष्णु गायत्री मंत्र
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
श्री विष्णु मंत्र
मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः।
मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥
विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥