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- जबलपुर में श्रीराम ने की थी शिवलिंग की स्थापना।
- पशुपतिनाथ मंदिर में होते हैं विशेष अनुष्ठान।
- उल्लेख नर्मदा पुराण और शिव पुराण में मिलता है।
Maha Shivratri 2024 : महाशिवरात्रि महापर्व केवल शिव-पार्वती का विवाह ही नहीं वरन सृष्टि के आरंभ की रात्रि है। अहोरात्र! महाशिवरात्रि! वस्तुतः आदि शक्ति का एकाकार स्वरूप, अर्धनारीश्वर के रूप में अभिव्यक्त, दो स्वरूपों में पृथक-प्रेम -फिर मिलन का संदेश दर्शन है। पुन: एकाकार हो जाना, यही तो जीवन का रहस्य है। यही सत्य है, यही सुंदर है, यही शिव है। इसीलिये सनातन धर्म शाश्वत है। दुनिया में विविध धर्म हैं, परंतु शायद ही इनके अधिष्ठाताओं ने नारी शक्ति को अभिव्यक्त किया हो। शक्ति के दो स्वरूपों के मधुर मिलन की रात्रि पर विश्व कल्याण निहित है। वहीं दूसरी ओर जनजातीय अवधारणा जय सेवा, जय बड़ा देव, सेवा जोहार, का मूल प्रकृति की शाश्वतता में निहित है।
रेवा तट हैं भगवान शिव की तपोस्थली
हर और उसके आसपास के जिलों को नर्मदा की धारा के लिए ही नहीं बल्कि भगवान शंकर की तपस्या के लिए भी जाना जाता है। यही कारण है कि यहां ऐसे प्राचीन शिवालय हैं जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है। इन शिवालयों में विराजे भोलेनाथ भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं। नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में भगवान शिव की तपस्या का उल्लेख नर्मदा पुराण और शिव पुराण में मिलता है।
देवताओं ने की थी शिवलिंग की स्थापना
प्रसिद्ध इतिहासकार डा. आनंद सिंह राणा ने बताया कि तारकासुर के वध के बाद उसके पुत्रों तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने स्वर्णपुरी, रजतपुरी और लौहपुरी नगरी बसाई। जो आकाश में उड़ती थी। इस नगरी से तीनों भाइयों ने तांडव मचा रखा था। जिसका विध्वंस भगवान महादेव ने त्रिपुरी में किया। जो वर्तमान का तेवर क्षेत्र कहलाता है। तब देवताओं ने नर्मदा किनारे त्रिपुरेश्वर शिवलिंग की स्थापना की। त्रिपुरी राज्य की सीमाएं वर्तमान के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों तक फैली हुई थीं। पद्यम पुराण, मत्स्य पुराण, लिंग पुराण में त्रिपुरी का उल्लेख मिलता है।
इस मंदिर में श्रीराम ने स्थापित किया था शिवलिंग
गुप्तेश्वर नाथ का प्रथम पूजन श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान एक गुप्त यात्रा के अंतर्गत किया था। गुप्तेश्वर धाम के डा स्वामी मुकुंददास ने इस स्थल का महत्व बताते हुए आगे कहा कि वनवास काल में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जब चित्रकूट से सुतीक्ष्ण आश्रम होते हुए आगे बढ़े तो उनकी भेंट 35 संतों के समूह से हुई इनमें एक ऋषि जाबालि भी थे। कुछ समय बाद ऋषि जाबालि से प्रसन्न होकर श्रीराम गुप्त यात्रा पर जबलपुर आए और यहां नर्मदा की जलधारा के निकट बालू के शिव बनाकर उनका पूजन किया। गुफा पर विराजमान भगवान गुप्तेशवर की तब से आराधना का क्रम थमा नहीं है।
शिव और शक्ति के मिलन की प्रतीक महाशिवरात्रि
हिंदू पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि कई कारणों से महत्व रखती है। एक मान्यता यह है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था, और यह त्योहार उनके दिव्य मिलन का जश्न मनाने के लिए हर साल मनाया जाता है। साथ ही यह शिव और शक्ति के मिलन का भी प्रतीक है। इस पर्व को लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन महादेव ने समुद्र मंथन के दौरान निकले जहर को पीकर दुनिया को अंधकार से बचाया था, जिसके चलते उनका गला नीला हो गया था और वे नीलकंठ कहलाएं। इसके अलावा महाशिवरात्रि शिव और उनके नृत्य ‘तांडव’ के बारे में बात करती है। ऐसा कहा जाता है कि भोलेनाथ इस रात ‘सृजन, संरक्षण और विनाश’ का अपना लौकिक नृत्य करते हैं।
व्रत रहने की परंपरा है खास
महाशिवरात्रि का महापर्व हर साल फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। शिव भक्तों के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है। भोलेनाथ की पूजा के लिए महाशिवरात्रि का दिन सबसे अच्छा और शुभ माना जाता है, इसलिए शिव भक्त इस दिन की वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन शिव की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से कुंवारी कन्या को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अगर कन्या का विवाह काफी समय से नहीं हो रहा हो या किसी भी तरह की बाधा आ रही हो तो उसे महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिए। इस स्थिति के लिए यह व्रत बेहद फलदायिनी माना गया है। इस व्रत को करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही हमेशा सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।