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चुनाव आयोग ने 17 अक्टूबर 2023 को पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम) में चुनावों की तारीख का ऐलान किया था. इसमें तेंलगाना में सबसे अंत में यानी 30 नवंबर को वोटिंग थी, लेकिन यही तेलंगाना सरकार बनाने के मामले में नंबर-1 पर पहुंच गया है. यानी पांच राज्यों में सबसे पहले 7 दिसंबर को यहीं नई सरकार शपथ लेगी. वहीं, मिजोरम में 8 दिसंबर को शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन होगा.
इन तारीखों की घोषणा के साथ ही बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर जिन राज्यों में पहले चुनाव हुए, सबसे पहले मतगणना हुई, वहां सरकार बनाने में क्या अड़चन आ रही है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस सवाल का जवाब देने से बच रही है, लेकिन इसके पीछे जो वजह है वह सबके सामने है. आइए जानते हैं विस्तार से.
सीएम के नाम पर देरी की वजह
बीजेपी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बहुमत हासिल किया है औऱ यहीं पर इन्हें सरकार बनानी है, लेकिन चुनाव परिणाम आने के तीन दिन बाद भी पार्टी अभी तक सीएम के नाम को तय नहीं कर पाई है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये है कि पार्टी इस बार चुनाव में सीएम फेस के बिना उतरी थी. उसने मध्य प्रदेश में अपने मौजूदा सीएम शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ व राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्रियों (रमन सिंह और वसुंधरा राजे) से भी किनारा कर लिया था. यानी पार्टी इनको सीएम बनाना नहीं चाहती है.
इसके अलावा पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अपने कई सांसदों को भी विधायक चुनाव के लिए उतार दिया था. इनमें से अधिकतर जीत चुके हैं. बीजेपी के सामने तीनों ही राज्यों में ऐसे कई बड़े नाम हैं जिनमें से एक को तय करना इतना आसान नहीं है.
तुरंत फैसले लेने वाली पार्टी के सामने ये है चुनौती
बीजेपी आमतौर पर तुरंत और कड़े फैसले लेने के लिए जानी जाती है, लेकिन इन तीन राज्यों में मुख्यमंत्री का नाम तय करने में पार्टी को काफी समय लग रहा है. इसकी बड़ी वजह है अंदरूनी कलह और वोट बैंक पर नजर. हालांकि पार्टी इस पर कुछ भी बोलने से बच रही है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो तस्वीरें सामने आईं हैं उससे यह लग रहा है.
सबसे पहले राजस्थान की बात करें तो यहां सीएम की रेस में दीया कुमारी, बाबा बालकनाथ, किरोड़ी लाल मीणा के नाम आगे चल रहे थे. इस बीच वसुंधरा राजे गुट भी सक्रिय हुआ और कई विधायक मंगलवार को वसुंधरा राजे से मिलने पहुंचे. बड़ी संख्या में कार्यकर्ता वसुंधरा राजे को सीएम बनाना चाहती है, लेकिन पार्टी इसके पक्ष में नहीं है. वहीं, पार्टी ऐसा करती है तो हो सकता है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे और उउनके समर्थक विरोध कर दें. इसलिए बीजेपी राजस्थान में बैकफुट पर नजर आ रही है.
मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां बीजेपी प्रचंड बहुमत से जीती है और इसका श्रेय पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान व उनकी कल्याणकारी योजनाओं को दिया जा रहा है, लेकिन बीजेपी ने शुरुआत से ही शिवराज सिंह चौहान से किनारा कर लिया था. पार्टी उन्हें सीएम बनाने के पक्ष में नहीं है, लेकिन उसके सामने चुनौती ये है कि अगर वह किसी और का नाम लेती है तो शिवराज समर्थक बड़ी संख्या में नाराज हो जाएंगे. इसके अलावा यहां भी ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर व प्रहलाद सिंह जैसे नाम से भी मामला उलझा है.
छत्तीसगढ़ में भी यही कहानी है. पार्टी यहां के पूर्व सीएम रमन सिंह को अब कोई मौका नहीं देना चाहती है. यहां भी रेस में तीन नाम हैं, लेकिन बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वह प्रदेश को आदिवासी सीएम देगी. ऐसे में पार्टी किसी आदिवासी चेहरे को ढूंढ रही है, , ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आदिवासी वोट उसे मिल सके.
पुराने नाम से छुटकारा भी देरी की वजह
इसके अलावा सीएम के नाम के ऐलान में देरी की एक वजह ये भी है कि पार्टी अब अपने किसी भी पुराने नाम पर दांव लगाना नहीं चाहती है. फिर चाहे शिवराज सिंह चौहान हों या वसुंधरा राजे और रमन सिंह हों. ये तीनों लंबे समय तक प्रदेश के सीएम रहे हैं. पार्टी अब नई टीम तैयार करना चाहती है.