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दंतेवाड़ा, 28 अक्टूबर 2022 :आदिम जनजातियों और खूबसूरत प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है बस्तर। यहां की आदिम संस्कृति पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करती है। सीधे-सरल लोग बस्तर की पहचान हैं। इन सबके अलावा यहां की परंपराएं और आदिम मान्यताएं वैश्विक स्तर पर एक अबूझ पहेली है। जिनमें से एक है बस्तर क्षेत्र में अदृश्य शक्तियों को मानने और उस पर आस्था रखने की मान्यता। बस्तर के दंतेवाड़ा जिला में स्थित माँ दंतेश्वरी का समृद्ध प्राचीन इतिहास है। आदिवासियों की आराध्या माता दंतेश्वरी मंदिर प्राचीन काल से ही आस्था का केंद्र रहा है लेकिन यहाँ के रहने वाले बस्तर के निवासी भिन्न-भिन्न लोक आस्थाओं को मानने के बावजूद अदृश्य शक्तियों पर विश्वास रखते हैं। भारत में प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार दीवाली का त्यौहार मनाया जाता है, लेकिन बस्तर के दंतेवाड़ा जिले के एक छोटे से गांव बिंजाम में ऐसा नहीं है। यहां के लोगों के लिए स्थानीय स्तर पर लगने वाला हूँगा वेला मेला ही असली दिवाली है। जो कि अदृश्य शक्तियों को मानने का अनूठा पर्व है।
सभी को आशीर्वाद देंगे या मिलेंगे यह ज़रूरी नहीं होता। कभी कभी कुछ जोड़ों को आशीर्वाद नहीं भी मिल पाता है। इसके पीछे का कारण पूछने पर यहाँ के प्रमुख गायता कहते हैं, कि जोड़ों में कुछ समस्या बाक़ी होती है, जिसके कारण उन्हें ये आशीर्वाद नहीं मिलता। दक्षिण बस्तर में देवों को आँगा और कोला के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस क्षेत्र के प्रमुख देव के रूप में उसेन डोकरा (आंगा) जो प्रमुख हैं, और यहां के लेकामी वंश के प्रमुख देवता हैं, जिनका विवाह सर्वप्रथम थुले डोकरी से हुआ और उनसे संबंध विच्छेद होने के उपरांत कोयले डोकरी से विवाह किया। इनसे दो संतान हुई जो हूंगा और वेला के रूप में प्रसिद्ध हुए। इन्हें कोला के रूप में भी पहचान प्राप्त है।हूंगा से गढ़ बोमड़ा पैदा हुए जो अपने दादा उसेन डोकरा के साथ घोटपाल में रहते हैं और वेला से आदुरूँगा, बोमड़ा, कड़े लिंगा व जात बोमड़ा पैदा हुए। जो आतरा और लेकामी वंश के देव बने और ये मसेनार, पंडेवार के प्रमुख देव बने। ये कोला देव अभी तक अविवाहित हैं।