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– मेडिकल कॉलेज, सीएचसी और आईएमए चिकित्सकों ने जाना क्षयरोग गाइडलाइन और नियंत्रण के उपाय
कोरबा, 19 अक्टूबर 2022, टीबी (क्षय) रोग पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत कोरबा में ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन ( आईएमए) , जिला क्षय केंद्र और मेडिकल कॉलेज कोरबा के मार्गदर्शन में ‘क्षयरोग (टीबी) के नवीन मॉड्यूल्स का संवेदीकरण’ प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर टीबी की गाइडलाइन और उसमें हुए बदलाव और प्रबंधन विषय पर निजी चिकित्सकों, शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) के मेडिकल ऑफिसर, ग्रामीण चिकित्सा सहायकों , सुपरवाइजर, मितानिन ट्रेनर, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ता एमपीडब्ल्यू को जानकारी प्रदान की गई। इस दौरान काफी संख्या में स्वास्थ्य अधिकारियों ने टीबी उन्मूलन की दिशा में हो रहे प्रयास पर अपनी सहभागिता प्रदर्शित की।
टीबी रोग के लक्षण होने पर सबसे पहले बलगम की जांच कराने की सलाह देते हुए छत्तीसगढ़ को साल- 2023 तक टीबी मुक्त करने का प्रयास किया जा रहा है। बच्चों में टीबी रोग और टीबी रोग को लेकर गाइडलाइन में बदलाव की जानकारी के लिए चिकित्सकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसी कड़ी में क्षमता निर्माण के उद्देश्य से राज्य एवं जिला क्षय केंद्र के मार्गदर्शन से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा शहरी और ग्रामीण चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस अवसर पर सीएमएचओ डॉ. एस.एन. केसरी ने बताया: “वर्ष 2025 तक देश को क्षय रोग मुक्त करने का लक्ष्य भारत सरकार ने रखा है। परंतु छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उससे पहले ही राज्य को 2023 तक टीबी मुक्त बनाने का निर्णय लिया गया है। इसलिए टीबी उन्मूलन कार्यक्रम पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। बच्चों एवं बड़ों में टीबी की बीमारी को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने का लगातार प्रयास भी किया जा रहा है। इसी कड़ी में आईएमए ( ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन) से संबद्ध सभी शहरी और ग्रामीण चिकित्सकों को टीबी रोग (क्षय ) पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।“
इस मौके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ ) सलाहकार डॉ. रितु कश्यप ने बताया: “लक्षण वाले टीबी मरीजों की टीबी की जांच, उपचार, पोषण आहार आदि के प्रति अधिक जागरूकता जरूरी है। साथ ही उन मरीजों तक टीबी निदान सेवाएं सुगमता से पहुंच पाए यह भी अहम है जिसके लिए हमें प्रयास करना है। इस प्रयास से बीमारी के संबंध में फैली हुई सामाजिक भ्रांतियों को भी दूर किया जा सकेगा और टीबी मरीजों को दवाइयों के अतिरिक्त बेहतर पोषण आहार की भी सहायता दी जा सकती है । इन सभी को करने के लिए चिकित्सकों को टीबी मरीजों की पहचान, उपचार के साथ-साथ मरीजों को मिलने वाली सरकारी सहायता के प्रति ग्रामीण एवं शहरी चिकित्सकों की जागरूकता भी जरूरी है। “
सरकारी अस्पतालों में इलाज पर जोर – जिला नोडल अधिकारी टीबी नियंत्रण कार्यक्रम डॉ. जी.एस. जात्रा ने बताया: “जिले को टीबी मुक्त बनाने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है। टीबी नियंत्रण के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए टीबी मरीज के लिये सामाजिक सहयोग’’ (कम्युनिटी सपोर्ट टू टीबी पेशेंट) कार्यक्रम आरंभ किया गया है । जिसका उद्देश्य टीबी मरीजों के उपचार एवं पोषण आहार में समुदाय की सहभागिता तथा मरीजों को अतिरिक्त सहायता उपलब्ध कराना है । ऐसे मरीजों के स्वस्थ होने का मूल मंत्र समय पर और नियमित दवाई लेना और पोषण आहार है। इसलिए इस दिशा में विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही साथ टीबी मरीजों की पहचान होने पर उनका इलाज सुगम हो सके इसलिए सरकारी अस्पतालों में रेफर किए जाने और डॉट्स के माध्यम से नियमित दवाएं उन मरीजों को मिल सकें इसलिए विशेष प्रशिक्षण चिकित्सकों को दिया जा रहा है। इस कार्यक्रम में द यूनियन , टीबी मितान, पिरामल फाउंडेशन तथा पीपीएसए (एचएलएफपीपीटी) संस्था भी सहयोग कर रही है। वर्तमान में शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सकों एवं ग्रामीण चिकित्सा सहायकों को प्रशिक्षित किया गया है। आने वाले समय में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं मेडिकल ऑफिसर, स्टाफ नर्स को भी विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा।“
इस मौके पर मेडिकल कॉलेज कोरबा के असिस्टेंट प्रो. डॉ. श्रीकांत भास्कर, डॉ. गोपाल कंवर, जिला कार्यक्रम समन्वयक प्रवेश खूंटे, आईएमए कोरबा के अध्यक्ष डॉ. एच.आर प्रसाद, आलोक दुबे एवं जिला टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के कर्मचारी एवं चिकित्सक उपस्थित थे।