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पितरों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने का पर्व पितृपक्ष 10 सितम्बर को शुरू होगा। यह 25 को पितृ विसर्जन तक चलेगा। वहीं भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन जिनके पितरों की मृत्यु हुई है वे 10 सितम्बर को ही पितरों का श्राद्ध कर्म करेंगे। चाणक्य सेवा संस्थान के आचार्य श्याम जी पांडेय ने बताया कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से 15 दिन पितृपक्ष मनाया जाता है। इन 15 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी पुण्यतिथि पर श्राद्ध करते हैं। पितरों का ऋण श्राद्ध के माध्यम से चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास, तिथि में स्वर्गवासी हुए अपने पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। बताया कि श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए।
तिथि ज्ञात नहीं तो अमावस्या को करें श्राद्ध तर्पण
आचार्य श्याम जी पांडेय बताया कि आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया कहते हैं।जो व्यक्ति पितृ पक्ष के 15 दिनों तक श्राद्ध और तर्पण नहीं करते हैं,वे अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं।इसके अतिरिक्त जिन पितरों की तिथि ज्ञात नहीं,वे भी श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को ही करते हैं।इस दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है।
पितृपक्ष की श्राद्ध तालिका
आचार्य श्याम जी पांडेय ने बताया कि 10 सितम्बर को पूर्णिमा श्राद्ध है।11 को प्रतिपदा श्राद्ध।12 को द्वितीया और तृतीया श्राद्ध।13 को चतुर्थी श्राद्ध।14 को पंचमी श्राद्ध।15 को षष्ठी श्राद्ध।16 को कोई श्राद कर्म नहीं होगा।17 को सप्तमी श्राद्ध।18 को अष्टमी श्राद्ध।19 को नवमी श्राद्ध।20 को दशमी श्राद्ध।21 को एकादशी श्राद्ध।22 को द्वादशी श्राद्ध।23 को त्रयोदशी श्राद्ध।24 को चतुर्दशी श्राद्ध।25 को अमावस्या श्राद्ध है।इसमे पितरों का श्राद्ध कर्म करेंगे।
श्राद्ध में नहीं करें ये काम
आचार्य श्याम जी पांडेय ने बताया कि जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं,उन्हें पूरे 15 दिनों तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करके ही कुछ खाना पीना चाहिए।इस नियम का पालन करें।
ऐसे करें श्राद्ध का तर्पण
आचार्य श्याम जी पांडेय ने बताया कि सुबह स्नान के बाद पितरों का तर्पण करने के लिए सबसे पहले हाथ में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उन्हें अपनी पूजा स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करें। पितरों को तर्पण में जल, तिल और फूल अर्पित करें। इसके साथ ही जिस दिन पितरों की मृत्यु हुई है,उस दिन उनके नाम से और अपनी श्रद्धा और यथाशक्ति के अनुसार भोजन बनवाकर ब्राह्मणों को दान करें। कौवा व श्वान में भी भोजन वितरित करें।