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– नहीं मानीं हार, “मितान दीदी” बनकर टीबी मरीजों की अब कर रही मदद
बिलासपुर, 31 अगस्त 2022, “जांच के दौरान जब 22 वर्षीय मनीषा श्रीवास को टीबी यानि क्षयरोग होने की जानकारी मिली तो वह बहुत डर गईI बीमारी से ज्यादा घर के आस-पास के लोंगों द्वारा भेदभाव पूर्ण व्यवहार और कई तरह की बातें किए जाने से वह टूट गई। उस पर कभी भी ठीक नहीं होने का डर इतना हावी हो गया था कि उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था। लेकिन परिवार के सकारात्मक व्यवहार, दवाओं के नियमित सेवन तथा पौष्टिक आहार लेकर मैं अब स्वस्थ हूं। इस बीमारी के बारे में लोगों को जानकारी देकर सुकून महसूस कर रही हूं।“ यह बातें बिलासपुर की रहने वाली मनीषा ने क्षयरोग जागरूकता संबंधी सामाजिक बैठक के दौरान उपस्थित लोगों को दी।
इस दौरान गृहिणी सुमन एवं रानू ने टीबी के संक्रमण और इससे बचाव के बारे में पूछा। जिसपर मनीषा ने टीबी के लक्षण, बीमारी को लेकर व्याप्त भ्रांतियों और सामाजिक भेदभाव को दूर करने के लिए अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने नियमित दवाओं का सेवन करने और पौष्टिक आहार लेने से बीमारी के ठीक हो जाने, टीबी की जांच और इलाज सभी सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केन्द्रों में निःशुल्क उपलब्ध होने के बारे में भी लोगों को बताया। मितानिन के सहयोग से आयोजित हुई बैठक में स्वच्छता, मौसमी बीमारियों और पौष्टिक आहार के बारे भी जानकारी दी गई। मनीषा की तरह ही जिले के टीबी मितान टीबी के मरीजों की पहचान और उपचार में सहयोग कर रहे हैं। उनके अनुभवों द्वारा समाज में जागरूकता लाई जा रही है। दोहरी चुनौति पर नहीं मानी हार – मनीषा बताती हैं: “घर की स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से मुझे पढ़ाई छोड़कर नौकरी नौकरी करनी पड़ी। बीमारी के समय यानि वर्ष 2019 में मुझे अचानक ही बुखार और खांसी की समस्या होने लगी। तीन-चार माह ऐसा ही चलता रहा, इस बीच मैंने प्राइवेट अस्पताल में इलाज भी कराया, पैसे खर्च हुए मगर मुझे आराम नहीं मिला। तब सिम्स अस्पताल में टीबी की जांच हुईI मुझे टीबी होने की पुष्टि होने पर मेरा इलाज शुरू हुआ। मैं बहुत कमजोर हो गई थी। इस दौरान मुझे टीबी से जंग और परिवार की आर्थिक सहायता, इन दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मेरा मनोबल कई बार टूटI था, मगर नियमित दवा का सेवन कर मैं पूरी तरह स्वस्थ हो गई।“
लोगों को समझाना मुश्किल- मनीषा कहती हैं: “टीबी उन्मूलन कार्यक्रम पर विशेष ध्यान छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिया जा रहा है। क्षय रोग से ठीक हो चुके लोग कि तरह अब मैं भी बीते एक वर्ष से टीबी मितान के रूप में कार्य कर रही हूं। ग्रामीण इलाकों के लोगों, अशिक्षित लोगों को टीबी के बारे में समझाना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि आज भी गांव में कुछे एक जगह टीबी के लक्षणों को प्रेतबाधा ही मानते हैं। घर भ्रमण और बैठकों में लगातार समझाने और अपना अनुभव उनसे साझा करने पर लोग समझते हैं और इलाज के लिए तैयार होते हैं। शुरू में तो मुझे और भी मुश्किल होता था, मगर अब मितानिन की मदद से लोगों को समझाने में मदद मिलती है। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे क्षय रोग के प्रति फैली भ्रांतियों के संबंध में लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी दी गई है। “
क्षेत्रानुसार करते हैं कार्य- टीबी मितान लाइन लिस्ट के आधार पर क्षेत्रानुसार लोगों के घर जाकर टीबी से ग्रसित मरीजों की पहचान कर रहे हैं। किसी व्यक्ति में खांसी का दो सप्ताह या उससे अधिक समय से रहने, खांसते वक्त बलगम और खून के आने, भूख कम होने, लगातार वजन कम होने, तेज या कम बुखार रहने, छाती में दर्द आदि कि शिकायत के लक्षण दिखाई देने पर उन्हें फौरन नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र पर जांच और इलाज शुरू करवाते हैं। क्षय रोग की जांच और उपचार सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में निःशुल्क उपलब्ध होती है।