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श्रीमती लक्ष्मी ध्रुव, श्रीमती ओम बाई ध्रुव, श्रीमती उमा ध्रुव , श्रीमती यामिनी यादव -कमरछठ -खमरछठ, हलषष्ठी या हलषष्ठ पूजा करने के लिए घर -घर जाकर पूजा अर्चना का महत्व बताकर किया जागरूक
संगठन में शक्ति है, आत्मीयता व प्रेम भावना से समाज उन्नति कर सकता है
घनश्याम यादव /देवभोग -गरियाबंद @खबरवाला न्यूज :- संगठन में बड़ी शक्ति होती है। संगठित परिवार, समाज और संस्था कभी असफल नहीं होते हैं। आपसी आत्मीयता, प्रेम, स्नेह, वात्सल्य और एक-दूसरे को सहयोग की भावना से समाज उन्नति कर सकता है। समाज के बड़े, छोटों के प्रति स्नेह और सहयोग का भाव रखें तो समाज के कार्य उत्साह , उत्सव , पर्व , त्यौहार उमंगता से संपन्न हो पाएंगे।
गरियाबंद जिला के देवभोग विकासखंड के कई गांव ऐसे है जो कि उड़ीसा बार्डर में स्थित है। अधिकाशं रिश्ते -नाते उनसे जुड़े होने के कारण ऐसे कई पर्व ओर त्यौहार है जो कि भिन्न भिन्न हैं ऐसे ही कमरछठ का पर्व है, अधिकाशं ऐसे उड़ीसा क्षेत्र जहां ये पर्व को नही मानते । ऐसे ही लाटापारा ग्राम है जहां पूर्व में इसी व्रत के बारे ग्रामीण महिलायें अनजान थी , व्रत के बारे सुनी तो थी किन्तु इसका महत्व , पूजा विधि , फल के बारे अनजान थी।
लाटापारा निवासी पेशे से शिक्षिका श्रीमती लक्ष्मी ध्रुव, श्रीमती ओम बाई ध्रुव, तथा स्वास्थ्य विभाग कार्यकर्ता श्रीमती उमा ध्रुव एवं श्रीमती यामिनी यादव नगर सैनिक , ये चारों मूलत : गरियाबंद , कोपरा, पाण्डुका तथा मैनपुर से विवाह होकर आयी है। इनको छत्तीसगढ़ की पर्व त्यौहारों के बारे ज्यादा जानकारी होने के कारण गांव में निवासरत उड़ीसा से आई विवाहिता , नवविवाहिता महिलाओं को पूजा महत्व , विधि के बारे बताकर समूह में सम्मिलित कर उपवास , पूजा सामाग्री तथा अन्य विधि विधान के बारे बताकर व्रत धारण करवाकर निर्दिष्ट चयनित पूजा स्थल में उपस्थित करवाकर पूजा अर्चना कर पूजा उत्सव सम्पादित करवाने हेतु प्रेरित करती रहती है ।
छत्तीसगढ़ में आदिकाल से मनाया जा रहा यह त्यौहार : – श्रीमती रमा देवी जोगेन्द्र मिश्रा
कमरछठ पूजा उत्सव में पूजक के रूप में स्थानीय निवासी श्रीमती रमादेवी जोगेन्द्र मिश्रा के अनुसार कमरछठ व्रत में तालाब में पैदा हुए खाद्य पदार्थ अथवा बगैर जोते हुए खाद्य पदार्थ खाए जाते हैं. इसलिए इस दिन बिना हल चली वस्तुओं का ही महत्व होता है, महिलाएं पूजा के बाद पसहर चावल जिसे लाल भात कहते हैं और 6 प्रकार की भाजी का सेवन करती हैं. इस दिन सिर्फ भैंस के दूध और दही का ही सेवन किया जाता है. संतान की लंबी उम्र के लिए छत्तीसगढ़ में आदिकाल से ये त्यौहार मनाया जा रहा है.
कमरछठ हल षष्ठी का व्रत संतान प्राप्ति और संतान की सुख-समृद्धि के लिए करती हैं. इस व्रत में शिव और पार्वती जी की पूजा की जाती है. इस व्रत में महिलाओं द्वारा गली मोहल्लों और घरों में सगरी यानि दो तालाब की स्वरूप आकृति बनाई जाती है. व्रत रखने वाली महिलाएं सगरी में दूध, दही अर्पण करती हैं.
कमरछठ में 6 अंक का काफी महत्व है, सगरी में 6-6 बार पानी डाला जाता है. साथ ही 6 खिलौने, 6 लाई के दोने और 6 चुकिया यानि मिट्टी के छोटे घड़े भी चढ़ाए जाते हैं. 6 प्रकार के छोटे कपड़े सगरी के जल में डुबोए जाते हैं और संतान की कमर पर उन्हीं कपड़ों से 6 बार थपकी दी जाती है, जिसे पोती मारना कहते हैं।
उड़ीसा अंचल एवं छत्तीसगढ़ रिश्ते नाते संबंध होने के कारण ऐसे कई पर्व तथा व्रत , त्यौहार है जिनसे हम अनजान है , किन्तु मुझे गर्व महसूस हो रहा है कि इस पूजन में पूर्व में जहां महज 5-10 महिलायें व्रत धारण करती थी। आज इस वर्ष 40-50 महिलायें व्रत पूजा में सम्मिलित होकर संतानों की लंबी आयु की कामना कर रहे है।इसी प्रकार निरन्तर कमरछठ पर्व तथा अन्य पर्व तथा त्यौहारों में समरूपता दिखें , महिला संगठन शक्ति का निर्माण हो यही अपेक्षित करती हूं।
सभी माताओं की सभी मनोकामनापूर्ण हो इसी के साथ उज्जवल भविष्य की अनेक शुभकामनाएं