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– खुद के अनुभव के कारण टीबी मरीजों की स्क्रीनिंग व काउंसलिंग करने में मिल रही सहायता
बिलासपुर, 21 जुलाई 2022, मस्तुरी निवासी 55 वर्षीय सोनी साहू (परिवर्तित नाम) उस समय हतप्रभ रह गई जब ‘टीबी मितान’ मनोहर उसके घर टीबी जागरूकता सर्वे करने के लिए आए, और पूछताछ करते हुए मनोहर ने जब जानकारी दी कि वह खुद भी इस रोग से ग्रसित था और स्वास्थ्य केन्द्र में निःशुल्क जांच और उपचार कराकर अब वह पूरी तरह स्वस्थ्य हुए है । इतना ही नहीं सोनी को मनोहर ने आश्वस्त किया कि टीबी का रोग नियमित दवाएं और पौष्टिक आहार लेने से ठीक हो सकता है, मनोहर की बातों पर पहले तो सोनी को यकीन नहीं हुआ लेकिन जब टीबी के इलाज के संबंध में मनोहर से उसे वही जानकारी मिली जो प्राइवेट अस्पताल में मिली थी इसके बाद उसका विश्वास मनोहर पर जागा और उसने सरकारी अस्पताल में इलाज़ कराने का फैसला किया I
टीबी सर्वे के दौरान मनोहर ने सोनी को जानकारी दी कि टीबी का उपचार सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में निशुल्क होता है। कोई भी संभावित रोगी, या अन्य व्यक्ति लक्षण दिखने पर स्वास्थ्य केंद्र में जाकर इसकी जांच करवा सकता है। सोनी अब सरकारी डॉट सेंटर से दवाएं तथा चिकित्सकीय परामर्श ले रही हैं। इस तरह जिले के ‘टीबी मितान’ इस बीमारी को लेकर व्याप्त भ्रांतियों और सामाजिक भेदभाव को दूर करने और क्षय रोगियों का आत्मबल बढ़ाने के लिए अपना अनुभव साझा कर उन्हें उपचार में सहयोग भी कर रहे हैं।
लोग नहीं करते थे बात – सीपत मस्तुरी के रहने वाले मनोहर राज, जो टीबी को मात देकर ‘टीबी मितान’ के रूप में लोगों को टीबी के प्रति जागरूक कर रहे हैं। वह बताते हैं:” शुरू में टीबी की बीमारी के बारे में जब लोगों को बताते थे तो लोग इस संबंध में बात करना ही नहीं चाहते थे। घर-घर सर्वे के दौरान कई बार जब लोगों से टीबी के बारे में जानकारी लेते थे तो लोग उत्तर नहीं देते थे और वहां से चले जाते थे। वहीं कई बार खुद के बारे में जब लोगों को जानकारी देते थे तब लोग भेदभाव करते थे। लोग इस संबंध में कुछ भी बताना नहीं चाहते थे, इससे मुझे सर्वे में काफी परेशानी होती थी। ऐसे में अपने भाई (जो टीबी जागरूकता का कार्य करते हैं) को साथ जाता था, तब एक दो घरों में लोग बहुत मुश्किल से जानकारी देते थे। लेकिन निरंतर प्रयास करने से अब स्थिति बदल गई है और लोग अब खुद ही फोन कर मुझे बुलाते हैं और अपने आसपास के टीबी ग्रसितों की जानकारी भी देते हैं। अब तो कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने मेरे समझाने के बाद सरकारी अस्पताल में टीबी का इलाज़ कराया है और अब वह पूर्णतया स्वस्थ हैं। इससे मेरा मनोबल बढ़ता है, और उत्साह के साथ कार्य करने में मुझे मदद भी मिलती है।“
पहले खानी पड़ती थी 7 गोली- मनोहर ने बताया: “मुझे 2009 में टीबी हुआ था । हल्का बुखार आना, वजन कम होना और भूख नहीं लगना जैसे लक्षण थे। मेरे बड़े भाई जो कि टीबी मुक्त अभियान से जुड़े थे, उन्होंने मेरे लक्षण को देखकर मेरे बलगम की जांच कराई। जिसके बाद मुझे टीबी होने का पता चला। मेरा छह महीना उपचार चला I उस समय प्रतिदिन 7 गोलियां खानी पड़ती थीं, मगर अब टीबी ग्रसितों को 3 गोलियां रोजाना खानी होती हैं। नियमित दवा और पौष्टिक आहार लेकर मैंने टीबी को मात दी। ठीक होते ही मैं भी अपने बड़े भाई की तरह ही गांव व आसपास के लोगों को टीबी बीमारी के प्रति जानकारी देकर लोगों को जागरूक करने लगा। बीते 4 वर्षों से मैं ‘टीबी मितान’के रूप में टीबी मरीजों के उपचार में मदद कर रहा हूं।“
समय पर बीमारी की पहचान नहीं होती- मनोहर बताते हैं “टीबी का इलाज संभव है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले अधिकतर लोग बीड़ी, तंबाकू के सेवन के कारण इस बीमारी की चपेट में आ जाते है। जानकारी के अभाव में समय पर बीमारी की पहचान नहीं होती। अगर बीमारी का समय पर पता चल भी जाए तो उपचार कराने में गंभीरता नहीं बरतते जिसकी वजह से समस्या बढ़ने लगती है। इसलिए जब टीबी की पहचान हो जाए तो पोषण युक्त खानपान और स्वास्थ्य केंद्र से प्राप्त दवा का सेवन लगातार करना चाहिए। मैंने भी ऐसा ही किया है और मुझे अपने अनुभव के कारण टीबी मरीजों की स्क्रीनिंग व काउंसलिंग करने में काफी सहायता मिलती है।“