टीबी को मात देकर बने चैंपियन, अब कर रहे लोगों को जागरूक …

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– ‘टीबी मितान’ बनकर कर रहे सर्वे, मरीजों को पहुंचा रहे अस्पताल

कोरबा, 1 जुलाई 2022, सामूहिक भागीदारी से ही प्रदेश को टीबी मुक्त बनाने का सपना साकार किया जा सकता है। इस सपने को साकार करने के लिए हर व्यक्ति को सहयोगी बनना होगा। ऐसा संदेश देकर समाज में जागरूकता ला रहे ‘टीबी मितान’ क्षय रोग से ग्रसित दूसरे लोगों को इस बीमा्री से छुटकारा दिलाने के लिए प्रयासरत हैंI साथ ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा टीबी सर्वे एवं जांच के कार्यों में सक्रिय भी हैं।

वर्ष 2025 तक देश को क्षय रोग मुक्त करने का लक्ष्य भारत सरकार ने रखा है। परंतु छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उससे पहले ही राज्य को 2023 तक टीबी मुक्त बनाने का निर्णय लिया गया है। इसलिए टीबी उन्मूलन कार्यक्रम पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके तहत जिले के टीबी चैंपियन (जो खुद टीबी की बीमारी से ग्रसित थे, इलाज कराकर अब स्वस्थ हैं) वह अब ‘टीबी मितान’ बनकर इस बीमारी को लेकर व्याप्त भ्रांतियों और सामाजिक भेदभाव को दूर करने और क्षय रोगियों का मनोबल बढ़ाने के लिए अपना अनुभव साझा कर रहे हैं। साथ ही क्षय रोग से ग्रसित मरीजों का उपचार में सहयोग भी कर रहे हैं।

बीमारी से डरें नहीं, नियमित और पूरी दवा का का करें सेवन – मानिकपुर निवासी 55 वर्षीय ईश्वर साहू टीबी मितान हैं, इन्होंने टीबी होने के बाद नियमित और पूरी दवा का सेवन किया और सुपोषित खानपान से टीबी को मात दी। अब वह टीबी मरीजों की मदद कर रहे हैं।

ईश्वर बताते हैं: “मैं एक स्वयंसेवी संस्था में कार्य करता था, जो टीबी उन्मूलन के क्षेत्र में कार्य करती थी। छह वर्ष पूर्व कार्य के दौरान मुझे सीने में दर्द हुआ। यह दर्द लगातार कई दिनों तक बना रहा, तब मैं पास के स्वास्थ्य केन्द्र गया, जहां एक्सरे कराया और तब मुझे टीबी का पता चला। मुझे टीबी बीमारी और उसके लक्षण और उपचार के बारे में पहले ही प्रशिक्षण दिया गया था, इसलिए मुझे टीबी को समझने और इलाज कराकर इससे उबरने में परेशानी नहीं हुई। छह माह नियमित दवा, पौष्टिक भोजन और चिकित्सक द्वारा बताए सलाह पर अमल किया और आज मैं स्वस्थ हूं। “हालांकि बीमारी के दौरान मेरा काम भी छूट गया, मैं एक बार निराश जरूर हुआ मगर मेरी हिम्मत कम नहीं हुई। इसलिए मैंने टीबी बीमारी से पीड़ित एवं उसके आस- पास के लोगों को बीमारी के प्रति जागरूक करने की ठानी क्योंकि आज भी समाज में कई तरह की भ्रांतियां हैं इस बीमारी को लेकर, जिसको दूर करने की जरूरत है। वर्ष 2021 से मैं टीबी मितान बनकर लोगों की सेवा कर रहा हूं।“

मैंने जो खोया है, वह दूसरे लोग ना खोएं- जमीला खातून को 15 वर्ष पूर्व टीबी हुआ था । इसका पता उन्हें तब चला जब वह तीन माह की गर्भवती थीं। टीबी के कारण उनका गर्भपात हो गया था। जमीला बताती हैं: “मुझे टीबी दो बार हुईं। पहली बार जब मेरी शादी नही हुई थी तब जांच में टीबी की पुष्टि हुई । इसके बाद परिवार और पड़ोस के लोगों का व्यवहार एकदम से बदल गया था। बावजूद इसके नियमित दवा लेकर मैं टीबी मुक्त हो गई थी। दूसरी बार टीबी की पुष्टि तब हुई जब मैं गर्भवती थी। अपना और अन्य टीबी मरीजों का दर्द सुनकर मैंने संकल्प लिया था कि अगर मैं बच गईं तो दूसरों को इस बीमारी से मरने नहीं दूंगी और अज्ञानतावश मैंने जो खोया है वह दूसरों को नहीं खोने दूंगी। तभी से मैं टीबी मरीजों के बीच काम कर रही हूं।“ बीते एक वर्ष से मैं टीबी मितान बनकर टीबी मरीजों की खोज, सैंपल कलेक्शन एवं टीबी के मरीजों के समुचित उपचार में मदद कर रही हूं। “शुरुआती दौर में मेरे काम पर लोग हंसते थे, लेकिन अब खुद सलाह लेने आते हैं।“

टीबी चैंपियन को दिया गया प्रशिक्षण- जिले में 4 टीबी चैंपियन टीबी मितान के रूप में कार्य कर रहे हैं। जिला कार्यक्रम समन्वयक प्रवेश खूंटे ने: “बताया जिले को टीबी मुक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है। टीबी से मुक्त हुए लोगों को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया गया है, जिससे टीबी के मरीजों की पहचान और उपचार में सहयोग के साथ-साथ उनके अनुभवों द्वारा समाज में जागरूकता लाई जा सके।“

 

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