दिव्यांगता बाधा नहीं, आत्मनिर्भरता के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति है जरूरी…

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दिव्यांगता बाधा नहीं, आत्मनिर्भरता के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति है जरूरी…

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– दिव्यांग युवाओं का आत्मविश्वास बना ग्रामीणों के लिए प्रेरणा का माध्यम

– स्वयं सहायता समूह का गठन कर दूसरों को दे रहे सहारा

बलौदाबाजार / भाटापारा, 27 मई 2022, दिव्यांगता अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है, इसको चरितार्थ किया है बलौदाबाजार, भाटापारा के दिव्यांग युवाओं ने। आत्मविश्वास से भरे गांव के दिव्यांग युवा किसी पर बोझ बनें बिना ही, स्वयं सहायता समूह का गठन कर आत्मनिर्भर हैं। साथ ही गांव के अन्य युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन उन्हें भी आत्मनिर्भर बनने की सीख दे रहे हैं। समूह के युवाओं का मानना है कि अगर व्यक्ति ठान ले तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं है, बस दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिेए।

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हालांकि कुछ वर्षों पूर्व यह युवा भी खुद की दिव्यांगता को अभिशाप ही मान रहे थे, मगर एक स्वयंसेवी संस्था (गृहिणी) के मार्गदर्शन से इनमें एक उम्मीद जागी और आज दिव्यांग युवा ना सिर्फ स्वयं सहायता समूह ( दिव्यांग जनकल्याण सबल समूह) का गठन कर आर्थिक उपार्जन कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं बल्कि ग्रामीणों को भी कई तरह की ट्रेनिंग देकर स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहे हैं। साथ ही यह युवा एक ओर जहां सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के बारे में ग्रामीणों को जागरूक कर रहे हैं, वहीं ग्राम पंचायत, समाज कल्याण विभाग एवं अन्य जगहों से मिलने वाले सिलाई का कार्य कर अन्य का सहारा भी बनें हैं।

अपने समान और भी हैं, यह देखकर शुरू किया कार्य- समूह के 38 वर्षीय कमल नारायण साहू ने बताया: “परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से पढ़ाई भी नहीं कर सका। यह अपंग क्या करेगा, लोगों के ताने भी सुनने पड़ते थे, जिससे आत्मबल खत्म होने लगा था। तभी स्वयं सेवी संस्था के लोग गांव में आए और उन्होंने स्वरोजगार एवं अन्य तरह के प्रशिक्षण देने की जानकारी दी। जब प्रशिक्षण लेने के लिए पहुंचा तो, अपने समान ही अन्य दिव्यांगों को देखकर थोड़ी हिम्मत आई। शुरूआत में अगरबत्ती बनाना, सिलाई, कढ़ाई, दोना पत्तल बनाना, वाशिंग पाउडर बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। मुझे सबसे ज्यादा सिलाई में रूची थी और मैं वही करना चाहता था, लेकिन पैर से दिव्यांग होने की वजह से सिलाई नहीं कर पा रहा था, तब पिता ने अभ्यास करने की सीख दी। जिसके बाद मैंने भी ठाना और आज समूह के साथ ही खुद की एक दुकान भी संचालित कर सिलाई का कार्य कर रहा हूं। अब हमअन्य दिव्यांगों को भी सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने और समूह का गठन कर कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।“

तिरस्कार व कृपापात्र की दृष्टि से दुख होता था- समूह के 28 वर्षीय टेकराम पैकरा एवं 23 वर्षीय अश्वनी साहू का कहना है “मैं ही बस एक दिव्यांग हूं, और मैं ऐसा क्यों हूं बस यही विचार मन में आता रहता था। समाज के लोगों द्वारा भी तिरस्कार और कृपापात्र कि दृष्टि से देखा जाने से बहुत दुःख होता था। घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं होने की वजह से कुछ व्यवसाय करने में भी हम असमर्थ थे। मगर स्वयं सेवी संस्था से स्वरोजगार संबंधी प्रशिक्षण लेकर ‘हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं’ यह आत्मविश्वास जागा। हमें स्वयं सहायता समूह के जरिए आर्थिक उपार्जन और अन्य लोगों की मदद कर आज काफी सुकून मिलता है। क्योंकि दिव्यांगों को सहानुभूति नहीं चाहिए बल्कि उनका आत्मबल ही उन्हें सफल बना सकता है।“

अगरबत्ती निर्माण से की थी शुरूआत – वर्ष 2016 में ग्राम डमरू बलौदाबाजार भाटापारा के दिव्यांग युवाओं ने दिव्यांग स्वयं सहायता समूह “दिव्यांग जनकल्याण सबल समूह” का गठन किया था। शुरूआत में 10 सदस्यों का समूह था, मगर अब पांच सदस्य ही समूह का संचालन कर रहे हैं। समूह गठन के बाद अगरबत्ती बनाने का कार्य सदस्यों ने शुरू किया था। वहीं अब स्कूल यूनिफार्म, सरकारी अस्पतालों, निजी अस्पतालों के स्टाफ का यूनिफार्म एवं मास्क बनाकर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। कोरोनाकाल में अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए समूह ने 5 हजार से अधिक मास्क बनाकर लोगों को बांटा है। वहीं अन्य दिव्यांग समूह की सेनेटाइजर, डिटर्जेंट का निर्माण करने में मदद भी की है।

मेहनत से पाई सफलता- गृहिणी स्वयं सेवी संस्था की प्रमुख रूपा श्रीवास्तव का कहना है “दिव्यांग समूह के युवा कड़ी मेहनत और कुछ करने की चाहत से लबरेज हैं। हमने तो सिर्फ संस्था के माध्यम से “सामाजिक समरसता परियोजना” के तहत उन्हें मार्गदर्शन दिया है। आज वह जो कुछ भी हैं वह उनकी मेहनत और आत्मविश्वास की वजह से है। हां यह जरूर है कि संस्था की ओर से उन्हें उनकी जरूरत के हिसाब से स्वरोजगार के लिए कई तरह का प्रशिक्षण दिया गया। परंतु वह कड़ी मेहनत और लगन की वजह से समाज में पहचान बना कर एक नई दिशा दे रहे हैं।“

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