टीबी लाइलाज बीमारी नहीं, इसे छिपाएं नहीं, इलाज कराएं: डॉ. जात्रा…

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टीबी लाइलाज बीमारी नहीं, इसे छिपाएं नहीं, इलाज कराएं: डॉ. जात्रा…

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– राज्य को 2023 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य, जन-जागरूकता से टीबी मुक्ति का किया जा रहा प्रयास

(विश्व टीबी दिवस 24 मार्च विशेष)

कोरबा 23 मार्च,2022, विश्व टीबी दिवस यानि कि गुरूवार को जन-जागरूकता को बढ़ाने के लिए कोरबा जिला टीबी सेल द्वारा रैली निकाली जाएगी। जन-जागरूकता रैली के माध्यम से लोगों को बीमारी के प्रति जागरूक किया जाएगा और इसका मुफ्त इलाज सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में किया जाता है, इसकी जानकारी भी दी जाएगी।

रैली के आयोजकों ने बताया कि क्षय रोग या टीबी से मुक्ति के लिए जिले में विशेष अभियान चलाया जा रहा है। इसके अलावा युद्धस्तर पर मरीजों की पहचान ओर त्वरित इलाज की व्यवस्था की जा रही है। एक औद्योगिक जिले की खास चुनौतियों को ध्यान में रखकर ही कर्मियों का प्रशिक्षण किया जाता है ताकि जिले के शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में इस बीमारी पर सफलतापूर्वक काबू पाया जा सके और राज्य को 2023 तक टीबी मुक्त बनाने का सरकार का लक्ष्य समयबद्ध तरीके से पूर्ण किया जा सके। इन प्रयासों के चलते ही अप्रैल 2021 से फरवरी 2022 तक कुल 8,450 लोगों की जांच हुई। इनमें जांच उपरांत शासकीय और निजी अस्पतालों को मिलाकर कुल 1,261 टीबी के मरीज मिले हैं, जिनका उपचार किया जा रहा है।

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जिला नोडल अधिकारी डॉ. जी.एस. जात्रा ने बताया “टीबी लाइलाज बीमारी नहीं है, बल्कि छिपाने की बजाए जांच कराकर, इलाज कराने से यह ठीक हो जाता है। जिले में अभियान चलाकर टीबी मुक्ति का प्रयास किया जा रहा है। जिले के विभिन्न स्थानों पर विशेष टीम के माध्यम से टीबी रोगियों की पहचान की जा रही है। इनमें मुख्य रूप से जेल, कोयला खान, कोरबा अर्बन स्लम क्षेत्र, वृद्धाश्रम, बालिकागृह और रैन बसेरा आदि स्थानों में टीबी रोगियों की पहचान की जाती है। अप्रैल 2021 से फरवरी 2022 को ही लें तो कुल 8,450 लोगों की जांच हुई जिनमें से 1,261 टीबी मरीज मिले हैं। जिनका इलाज किया जा रहा है।“

इलाज पर जोर– जिला नोडल अधिकारी टीबी डॉ. जी.एस. जात्रा ने बताया “भारत से क्षय रोग को 2025 तक पूर्ण रुप से समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। परंतु छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य को 2023 तक टीबी मुक्त बनाने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत कोरबा जिले में युद्ध स्तर पर कार्य किया जा रहा है। इसके तहत जिले के सभी मेडिकल ऑफिसर, रूरल मेडिकल ऑफिसर को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। वहीं जिले के निचले स्तर के कर्मचारियों जैसे मितानिन, एमपीडब्ल्यू एवं अन्य को विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है ताकि वह अपने-अपने क्षेत्रों में टीबी संदिग्ध मरीजों की पहचान और उनका उपचार सुनिश्चित कर सके। टीबी रोगी के इलाज तथा उसका जिला क्षय नियंत्रण कार्यालय में पंजीकरण पर जोर दिया जा रहा है। इसी क्रम में लोगों को निःशुल्क दवाएं, इलाज करवाने और पोषण भत्ता दिए जाने की जानकारी भी टीबी खोजी दल द्वारा दी जाती है।“

ऐसे लक्षण दिखे तो जांच जरूरी – डॉ. जात्रा का कहना है खांसी का दो सप्ताह या उससे अधिक समय से रहना, खांसते वक्त बलगम और खून का आना, भूख का कम लगना, वजन लगातार कम होना, तेज या कम बुखार रहना, छाती में दर्द आदि कि शिकायत हो तो देर नहीं करते हुए फौरन ही नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र पर जांच और इलाज शुरू करवाना चाहिए। टीबी पूरी तरह से ठीक हो सकता है लेकिन इसके लिए समय पर और पूरा इलाज कराना जरूरी है।

क्यू मनाते हैं विश्व टीबी दिवस – विश्व क्षय या टीबी दिवस प्रतिवर्ष 24 मार्च को डॉ. राबर्ट कोच की स्मृति में मनाया जाता है। डॉ. कोच ने टीबी बैक्टीरिया की खोज 1882 में की थी, तभी से प्रतिवर्ष जागरूकता दिवस के रूप में इसे मनाया जाता है। इस वर्ष का थीम “इनवेस्ट टू एंड टीबी, सेव लाइव्स” रखा गया है।

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