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रायपुर. 12 मार्च 2022: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बीते 11 मार्च से अंतरराष्ट्रीय किसान सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। 11 से 14 मार्च तक चलने वाले चार दिवसीय इस आयोजन में प्रदेशभर से बड़ी संख्या किसान पहुंच रहे हैं। साथ ही गौठानों से जुड़कर आजीविका के नए साधन बना रहीं महिला स्व-सहायता समूह की सदस्य भी कृषि सम्मेलन का हिस्सा बनने पहुंची हुई हैं। इस सम्मेलन में कृषि एवं जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में राज्य में हो रहे नवाचार के साथ ही जैविक कृषि, आधुनिक खेती एवं तकनीक के प्रयोग से पारम्परिक फसलों के अलावा उद्यानिकी व बागवानी फसलों में उन्नति को देखा-समझा जा सकता है।
राजधानी रायपुर के लाभांडी स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित हो रहे किसान सम्मेलन में पहुंचे किसानों और स्व-सहायता समूह के सदस्यों ने शासन की योजनाओं से आर्थिक समृद्धि और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम को लेकर अपने अनुभव साझा किए।
जैविक खेती से उत्पादन, अब बन रहे आत्मनिर्भर –
किसान सम्मेलन में आरंग विकासखंड के ताड़ेगांव से नया सवेरा स्व-सहायता समूह संचालित करने वाली महिलाएं पहुंची थीं। यहां उन्होंने जैविक खेती के माध्यम से उगाए गए फसलों का स्टाल लगाया। यहां ये महिलाएं ब्लैक राईस, ग्रीन राईस, नगरी दुबराज जैसे चावल के पैकेट का प्रदर्शन और विक्रय कर रही हैं। इसके अलावा जैविक कृषि से उगाई गई अनेक तरह की सब्जियां भी स्टाल में मौजूद हैं। बातचीत में समूह की अध्यक्ष लक्ष्मी वर्मा और सचिव हेमलता साहू ने बताया कि 10 महिलाएं उनके समूह में हैं। जो गांव में ही मौजूद गौठान से जुड़ी हुई हैं। यहां गौठान में खरीदे गए गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाती हैं और इस वर्मी कम्पोस्ट को बेचने के अलावा खुद भी जैविक खेती के लिए इस्तेमाल में लाती हैं। इसके अलावा ये महिलाएं धान व सब्जी की खेती भी करती हैं। इन उत्पादों को बाजार में बेचने पर स्वयं आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं तो वहीं परिवार के लिए भी संबल बन रही हैं।
मछली पालन को कृषि का दर्जा मिलने के बाद बढ़ा रुझान –
किसान सम्मेलन के दौरान मत्स्य विभाग की ओर से लगाए गए स्टाल में कुछ ग्रामीणों की भीड़ दिखी। उनसे बातचीत पर इन ग्रामीणों ने बताया कि जब से राज्य शासन ने मछली पालन को कृषि का दर्जा दिया है, तब से मछली पालन की ओर अनेक ग्रामीणों का रुझान बढ़ गया है। इस दौरान पिथौरा ब्लॉक अंतर्गत फरौदा के गैसकुमार साहू ने बताया कि उनके पास मौजूद खेत में से डेढ़ एकड़ खेत को उन्होंने तालाब में बदल गया है। इसके लिए शासन की योजना के तहत उन्हें 9.88 लाख रुपए का अनुदान भी मिला। साथ ही बीज, जाल और प्रोटीन पाउडर भी राज्य शासन की ओर से दिया गया। शुरू के दो साल गैसकुमार साहू ने मोंगरी और तेलपिया मछली का उत्पादन किया। इस वर्ष मस्त्य विभाग की ओर से रोहू, कतला, मृकल, ग्रास काट प्रजाति की मछली के बीज दिए गए हैं। जिस भूमि पर धान की खेती कर श्री गैसकुमार 5-6 लाख रुपए की आय प्राप्त करते थे। अब मछली उत्पादन में यह आमदनी दो से तीन गुना तक पहुंच चुकी है। इस बार तालाब में मछलियों की संख्या और उनके बढ़ते वजन को देखते हुए श्री गैसकुमार साहू लगभग 20 लाख रुपये की आमदनी की उम्मीद जता रहे हैं।
इसी तरह दयालाल चक्रधारी ने भी इस वर्ष पारम्परिक खेती से हटकर अपनी कृषि भूमि को तालाब में बदला है। अब वे आधा एकड़ के तालाब में मछली पालन कर कृषि में नवाचार की ओर बढ़ रहे हैं। इसके लिए श्री चक्रधारी ने राज्य शासन की कृषि क्षेत्र में प्रोत्साहन के लिए चलाई जा रही योजनाओं को श्रेय दिया।
राज्य शासन की योजनाओं का मिल रहा पूरा लाभ –
पिथौरा विकासखंड के गड़बेड़ा गांव से पहुंचे किसान श्री रामप्यारे मधुकर ने कृषि को लेकर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया के अरसे से वे पारम्परिक तरीके से खेती करते आ रहे हैं। इसमें उन्हें सीमित आय होती थी। अब बीते तीन वर्ष से राज्य शासन की ओर से कृषि क्षेत्र में प्रोत्साहन के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभ मिल रहा है। इससे उन्होंने अपने कृषि में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करने का अवसर मिला है। सात एकड़ खेती के किसान श्री रामप्यारे को राज्य शासन की ओर से सब्सिडी में स्प्रींकलर मिला है। अब रोपा पद्धति से खेती कर रहे हैं। वहीं रासायनिक उर्वरकों के बजाय उन्होंने गौठानों में तैयार हो रहे वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल शुरू किया है। इससे फसल का उत्पादन बढ़ा है। दूसरी ओर धान खरीदी में भी राज्य शासन की ओर से समर्थन मूल्य के अलावा राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत दी जाने वाली आदान राशि से आर्थिक समृद्धि पर खुशी जाहिर की।