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महासमुंद 10 मार्च 2022:ज़िले के सरायपाली विकासखण्ड के कुटेला गांव में मनरेगा प्रगति के पीछे अनिता की अपनी एक दास्तां है। ग्राम पंचायत कुटेला की साधारण सी नजर आने वाली 21 वर्षीय अनिता सिदार के हाथों में गांव के मनरेगा श्रमिकों को कार्य आबंटन और उनसे कार्य कराने की महती जिम्मेदारी है। वे पिछले 1 वर्ष से गांव में योजनान्तर्गत महिला मेट की जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही हैं। यही कारण है कि जहाँ वर्ष 2021-21 में 470 मनरेगा परिवारों को 16 हजार 678 मानव दिवस का रोजगार मिला था एवं वह वर्ष 2021-22 के 11 माह के भीतर में 382 परिवारों को 12 हजार 819 मानव दिवस का रोज़गार प्राप्त हो चुका है और अभी वित्तीय वर्ष की समाप्ति को आधा माह से ज़्यादा का समय बचा है। प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री टी.एस. सिंह देव ने रायपुर से वीडियों कांफ्रेंसिंग के जरिए आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर उन्हें उत्कृष्ट कार्य करने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। प्रशस्ति पत्र ज़िला पंचायत अध्यक्ष एवं सीईओ ज़िला पंचायत श्री एस.आलोक ने सौंपा।
जिले के सरायपाली गांव में सम्पन्न परिवार में पली-बढ़ी अनिता, वर्तमान में स्नातक की पढ़ाई कर रही है, अपने परिवार में सबसे अलग थी उसके मन में महिला विकास एवं महिलाओं को आगे बढ़ाने एवं उन्हे अपने अधिकार के प्रति जागरूक करने के लिए हमेशा आगे है। गांव के सरपंच द्वारा उन्हे महात्मा गांधी नरेगा अन्तर्गत मेट कार्य के बारे में बताया जिसे वह अपने स्वेच्छा से वर्तमान में मेट कार्य कर रही है। साल 2020 से ग्राम रोजगार सहायक श्रीमती वृन्दावती साहू के मार्गदर्शन में काम करना प्रारम्भ कर दिया। अपनी लगनशीलता के बलबूते वे थोड़े दिनों में ही मेट के काम में दक्ष हो गई।
महात्मा गांधी नरेगा के विभिन्न पहलुओं से मेटों को अवगत कराने और उनके उन्मुखीकरण के लिए जनपद पंचायत-सरायपाली में दो-सप्ताह का विशेष प्रशिक्षण आयोजित किया गया था, जिसमें अनिता ने सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त किया। वे बताती हैं कि प्रशिक्षण से उनकी कार्य-कुशलता में वृद्धि हुई है। वे अब कार्यस्थल पर श्रमिकों का बेहतर तरीके से प्रबंधन कर पाती हैं। साथ ही नागरिक सूचना पटल निर्माण और जॉब कार्ड अद्यतनीकरण के बारे में काफी कुछ जानने और सीखने को मिला। महात्मा गांधी नरेगा को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानने वाली अनिता बीते दिनों को याद करते हुए बताती है कि उन्होंने योजना से मिले पारिश्रमिक में से 11 हजार रुपए जोड़कर रखे थे और उस पैसे उसने अपने पढ़ाई पर खर्च किए है। ताकि उन्हे पढ़ाई के लिए किसी पर आश्रित न रहना पड़े।